काशीपुर की प्राचीन रामलीला पायते वाली रामलीला में भरत मिलाप लीला का मंचन किया गया, अयोध्या के राजा दशरथ से उनकी रानी केकई ने राम के लिए 14 वर्ष वनवास व भरत के लिए राजतिलक मांगा। उसके बाद मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम ने पिता वचन का पालन करते हुए वन जाना स्वीकार किया। उनके साथ सीता व भाई लक्ष्मण भी राज महल छोड़कर वन में गए। राजा दशरथ ने इस वियोग में अपने प्राण त्याग दिए। वहीं नाव लीला राम के वट संवाद, भरत मिलाप का मंचन भी किया गया।
रामलीला के दौरान बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के साथ रामलीला का आनंद लेने के लिए रामलीला मैदान में पहुंचे। शहर में रामलीला चाहे कितने ही स्थानों पर होती हों लेकिन दशहरे कि दिन रामलीला मैदान में ही रावण, कुंभकरण व मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। भरत मिलाप लीला में मुख्य कलाकारों में भरत मनोज पंत, राम शिवम अग्रवाल, लक्षमण सजल मेहरोत्रा, शत्रुघ्न शिवम सिंघल, कैकई अनिल ठाकुर, कौशल्या अनिल सिन्हा,निशादराज संजय चौधरी, सीता सोनू चतुर्वेदी थे।
भरत मिलाप लीला के दौरान बतौर मुख्य अतिथि पूर्व सांसद और कुमाऊं नरेश के.सी.सिंह बाबा मौजूद थे, जिनका स्वागत रामलीला केमेटी के अध्यक्ष विष्णु प्रकाश अग्रवाल, संरक्षक महेश अग्रवाल,शरद मित्तल, राजेन्द्र महेश्वरी, राजेन्द्र मेहरोत्रा, मुकेश अग्रवाल, सुशील अग्रवाल, विनोद बाबू, मुकुन्द अग्रवाल, जिन्दर, दीपांशी मित्तल,पूनम अग्रवाल, गौरव गुप्ता, पारुल गुप्ता द्वारा किया गया, वहीं इस मौके पर विशिष्ठ अतिथि के तौर पर विमला गुडिया, पूर्व राज्य मंत्री इन्दु मान, संदीप सहगल, सूर्यप्रताप मौजूद थे।
केसीसिंह बाबा ने कहा कि, “संस्कारों को जीवंत रखने के लिए रामलीला के मंच एक बेहतर माध्यम है, हमारी संस्कृति को बचाने में रामलीला का अहम योगदान है, जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लाला का मंचन कर भावी पीढी में संस्कारों का संचार करने में योगदान दे रहे हैं।”