चार वर्षों से बिछड़े दिव्यांग को मिलाया परिवार से

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गोपेश्वर। बहराइच उत्तर प्रदेश से अपने परिजन से बिछड़ा मानसिंक रूप से दिव्यांग शिव वाजपई ठोकरें खोता हुआ सुदूर पहाड़ के विकास खंड घाट पहुंचा तो उसे वहां के व्यापारी युवा प्रकाश मैंदोल ने अपने साथ स्नेह के साथ रखा और उसे भांजा नाम दिया। उसे मानसिंक दिव्यांग की स्थित से भी उबारते हुए उसके परिजनों का पता कर उन्हें घाट बुलाकर शुक्रवार को उसके परिजनों को सौंप दिया है। यह क्षण बहुत ही भावुक था जब बहराइच से आए परिजनों ने चार साल पूर्व बिछड़े अपने भाई को पाया। उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे और उन्होंने पहाड़ के लोगों की इस उदारता के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और कहा कि ऐसी संवेदनशीलता और प्यार सिर्फ पहाड़वासियों में ही देखा जा सकता है।
चार वर्ष पहले मानसिक रूप से दिव्यांग शिव वाजपई लखनऊ जाने वाली ट्रेेन में बैठने के बजाय हरिद्वार की ट्रेन में बैठ गया और जब वह हरिद्वार पहुंचा तो रेलवे के टीटी ने उसे बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में आरपीएफ को सौंप दिया। आरपीएफ ने उसे रोशनाबाद जेल भेज दिया। उसकी जेब से मिले वोेटर कार्ड पर उसके घर वालों को सूचना पोस्टकार्ड से दी। पोस्टकार्ड मिलने से पहले ही रोशनाबाद जेल ने उसे छोड़ दिया। जब उसके घर वाले उसे खोजते हुए रोशनाबाद पहुंचे तो तब तक वह वहां से निकल चुका था। परिजनों ने उसे खोजने की बहुत कोशिश की मगर पता नहीं चल पाया। मानसिंक रूप से दिव्यांग शिव वाजपई पहाड़ की बस में बैठक कर किसी तरह विकास खंड घाट पहुंचा। यहां पर प्रकाश मैंदोली ने उसे सहारा देते हुए भांजा नाम दिया और देखते ही देखते हुए वह पूरे घाट बाजार में भांजा नाम से प्रसिद्ध हो गया। सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण बताते है कि प्रकाश केे प्यारे भांजा अपने मानसिंक दिव्यांगता से भी काफी उबरा और जब उससे उसके परिजनों जनों के बारे में पूछा गया तो उसने सारी कहानी बता डाली और प्रकाश ने उसके घर संपर्क किया। शुक्रवार को जब उसके परिजन उसे लेने घाट पहुंचे तो अपने शिव को पाते ही उनके आंखों में आंसू छलक पड़े। प्रकाश व घाट के लोगों के प्रति उन्होंने अपनी कृतज्ञता प्रकट की। प्रकाश मैंदोली कहते है कि मानसिंक रूप पीड़ित लोगों को दुत्कार की नहीं प्यार की आवश्यकता है। यह प्रेरणा हिंदी फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस से मिली।