उत्तराखंड राज्य में पलायन कोई नया विषय नहीं है, इस समय राज्य की सबसे बड़ी परेशानी है पलायन। हालांकि बहुत से युवा पलायन को रोकने के लिए नई पहल कर रहे हैं।
ऐसे ही रुद्रप्रयाग की दो युवतियां बड़ी इलायची की खेती से राज्य से पलायन को रोकने में अपना सहयोग दे रही हैं। जहां एक तरफ राज्य के किसान जंगली जानवरों और उनके आतंक से खेती से मुह मोड़ रहे हैं वहीं इन दोनों लड़कियों ने इलायची की खेती से बीच का रास्ता निकाला है और बहुत ही नायाब तरीके से खेती कर रहीं हैं।
इलायची की खेती करनी वाली मनीषा और सुमन ने इसकी शुरुआत की।मनीषा ने एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से इंग्लिश में एम.ए किया है और सुमन बी.कॉम की छात्रा हैं।इन दोनों ने मिलकर गांववालों के लिए एक नई मिसाल कायम की है।जहां एक तरफ गेहूं की फसल को जंगली जानवर नुकसान पहुंचा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ इलायची को जंगली जानवरों से कोई नुकसान नहीं है, कारण इलायची को जानवर खाने में पसंद नहीं करते।
कोटमल्ला गांव, रुद्रप्रयाग निवासी देव राघवेंद्र बद्री ने टीम न्यूजपोस्ट से हुई बातचीत में बताया कि, “गांव के आधा से ज्यादा किसान जंगली जानवरों के खेतों में हमला करके फसल नुसान करने की वजह से खेती छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं।कभी जंगली सूअर तो कभी बंदर गेहूं की फसल बरबाद कर देता है जिससे किसानों को नुकसान होता है।जानवरों को रोकना मुश्किल हैं क्योंकि जंगलों में आग लगने की वजह से वह खेतों की तरफ रुख कर रहे हैं जिसका खामियाज़ा किसानों को भरना पड़ रहा हैं। देव ने बताया कि, “इस परेशानी को देखते हुए गांव कि लड़कियों और कुछ लोगों ने इलायची की खेती शुरु की है जिससे उनको काफी मुनाफा हो रहा है, इतना ही नहीं इलायची की खेती का मार्केट में भी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।
मनीषा और सुमन की टीम न्यूजपोस्ट से हुई बातचीत में बताया कि, “हम दोनों ने लगभग दस नालियों में इलायची की खेती शुरु की है और हमें इससे काफी फायदा हैँ।इलायची की फसल को जंगली जानवरों से कोई नुकसान नहीं है इसलिए जो भी फसल होती है हम उसे बेच देते हैं।मनीषा ने बताया कि, “इलायची बहुत ही महंगा मसाला है और छाटे-बड़े होटलों से लेकर फाईव स्टार होटलों तक इसकी बहुत डिमांड है।इलायची की कीमत लोकल बाजार में 1500 रुपये प्रति किलो हैं हालांकि मार्केट बड़ा ना होने की वजह से यह कीमत कम है वरना इलायची 1900-3000 रुपये प्रति किलो बिकती है।”
मनीषा और सुमन के साथ इलायची की खेती कर रहे लक्ष्मण सिंह चौधरी ने बताया कि वह पढ़ाई के साथ हम इलायची की उत्पादन भी कर रहे हैं।वहीं पर्यावरणविद जगत सिंह चौदरी जंगली जी ने कहा कि, “जिस तरह से गांव के युवा बच्चों ने अपने गांव में रहकर बड़ी इलायची की खेती का विचार किया और इसपर मेहनत की ऐसे ही सभी को अपनी जन्मभूमि में रहकर आर्थिक पहलूओं पर सोचना चाहिए और काम करना चाहिए,इससे ना सिर्फ पलायन रुकेगा बल्कि राज्य भी मजबूत होगा।”
मनीषा और सुमन का यह ‘मिशन इलायची’ वाकई में काबिले तारीफ है और सभी युवाओ को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए की बिना पलायन के भी राज्य में बहुत से विकल्प हैं।
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