मनोज रावत को क्यों आती है अपने को विधायक कहने में शर्म

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    एक तरफ जहां लोग राजनीति में आने के लिये न जाने क्या-क्या पापड़ बेलते हैं, वहीं उत्तराखंड के केदारनाथ विधायक मनोज रावत को इन दिनों अपने आपको विधायक कहने में शर्म आ रही है। केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने अपने फेसबुक के माध्यम से लोगों से कहा कि उन्हें खुद को लोगों का जनप्रतिनिधि कहने में शर्म आती है, दरअसल रावत ने अपने क्षेत्र की विधवाओं का दर्द बयां किया है।

    उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा:

    उम्र 100 साल से ऊँपर ,15 साल की उम्र में विधवा, दो बार आवेदन किया पर विधवा पेंशन नही मिल पाई। दशज्यूला काण्डई का एक गांव है क्यूड़ी, वंहा की कृष्णा देवी, की उम्र 100 साल से ऊँपर है, पति नरेंद्र सिंह, जम्मू- कश्मीर में आजादी से पहले रेलवे में काम करते थे। तब वंही मर गए। जब पति मरे, कृष्णा देवी की उम्र 15-16 साल थी और जीवन काटने के लिए कुछ महीने का एक बेटा था। तब पति की पेंशन भी नही लगी। कही सरकारी विधवा पेंशन योजनाएं आयी, कही सरकारें बनी, कही जनप्रतिनिधि चुने गए पर 100 साल की ओर बड़ रही कृष्णा देवी की आज तक पेंशन नही लग पाई। कुछ साल पहले बेटे भी मर गए। अब परिवार में दो विधवाएं हैं। 3 पोतियों की शादी हो गयी।

    बगल पर शंकरी देवी के पति नायक धीर सिंह भी 1971 के युद्ध में शहीद हो गए उनके बेटे भी फौज को नौकरी के लिए चिट्ठी लिखते हुए बहुत कम उम्र में मर गए। शंकरी देवी के पति के शहीद होने के 4 दिन बाद उनका ये अभागा बेटा मुन्ना पैदा हुआ था। फौज ने भी शहीद सैनिक के परिवार के लिए कुछ नही किया।यानि एक परिसर में रहने वाले 2 परिवारों में दो- दो विधवाएं।

    अब नई आफत, इस बरसात में इन 4 विधवाओं का मकान टूट रहा है। उसी टूटे मकान में ये 4 विधवाएं एक ओर आपदा के इंतजार कर रही हैं।मुझे इन 4 विधवाओं के समूह से मिल कर ओर उनकी हालात देखकर स्वयं को जनप्रतिनिधि बताते हुए शर्म आ रही है।”

    विधायक मनोज रावत की इस पोस्ट से एक बात तो साफ है कि सिस्टम के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है। अगर किसी विधायक को अपनी बात फेसबुक के माध्यम से करनी पड़ रही है तो अाम अादमी अपना दुख कहा बयान करें?