हिमालय से ऊंचें हौंसले को सलाम

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अपने हौंसले के बल पर 68 साल की उम्र में 20 हजार फीट उंचे श्रीकांत पर्वत और हिमालय के चोटियों पर फ़तह करने वाली चंद्रप्रभा ऐंतवाल को मसूरी लिट्रेचर फ़ेस्टीवल में सम्मानित किया गया। मसूरी माउंटेन फेस्टिवल के पहले दिन 76 साल की चंद्रप्रभा ऐंतवाल जो एक पर्वतारोही हैं  को सम्मानित किया गया । चंद्रप्रभा माउंटेनियर के क्षेत्र की एक पायनियर हैं और बहुत से पर्वतों पर फतह कर चुकी हैं जैसे नंदा देवी, कंचनजंगा, त्रिशुल और माउंट जाओन्ली। 2010 में अर्जुन अर्वाड से नवाजा गया और 1990 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मीडिया के सवाल जवाब से दूर रहने वाली चंद्रप्रभा ने पुरस्कार लेने के बाद बहुत ही प्यार और धैर्य के साथ लोगों से बात कीय़ इसका काररण है उनका अपनी जन्मभूमि पहाड़ के लिए प्यार और लगाव जो बचपन से लेकर आज तक उनका घर रहा है।

न्यूज़पोस्ट टीम से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि “मैं बचपन से ही थोड़ी टेढ़ी थी,और हमारे जमाने में तो हम जानते भी नहीं थे कि माउंटेयरिंग क्या है,हम बाहर नहीं जाते थे और ना ही टीवी या ऐसा कुछ प्रचार-प्रसार था जैसे आज है।” उन्होंने बताया कि फिर एक दिन सन् 1969 में एनआईएमएच से एक सर्रकुलर आया जिसे देख कर उन्होंने एप्लाई किया और फिर 1972 में उन्हें एनआईएचएम बुलाया गया।अपने अनुभव के बारे में बताते हुए चंद्रप्रभा जी कहती हैं कि “पहले दिन जब मै पहली बार घर से निकली तो मैंने गढ़वाल देखा और गंगा को छुआ और महसूस किया और सोचा कि मैं कहा थी कि मैने यह पहले क्यों नहीं किया।”

चंद्रप्रभा बहुत साल एनआईएचएम अनुभव करने के बाद बताती हैं कि “मेरी पढ़ाई नगर पालिका के स्कूल से हुई तो इंग्लिश के बारे में ज्यादा नहीं जानती, एनआईएचएम में पहली ट्रेनिंग में कुछ समझ नहीं आया लेकिन जैसे ही प्रक्टिकल ट्रेनिंग शुरु हुई तो चीजें समझ आने लगी।”

अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद प्रभा ने कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक उन्होंने पर्वतों को फतह करने का सिलसिला शुरु किया और आज भी उनका जज्ब़ा और हौसला देखते बनता है।

आज चंद्रप्रभा उत्तरकाशी में अपने आशियाने में अपने अनुभव आने वाली भावी पीढ़ी के साथ बांटती हैं और उनका उत्साह बढ़ाती हैं।