वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने बुधवार को कांग्रेस का साथ छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया । तिवारी ने बीजेपी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थित में दिल्ली में उनके निवास पर अपने बेटे रोहित शेखर के साथ बीजेपी ज्वाइन करी। बताया जा रहै है कि तिवारी के कांग्रेस से मोहभंग के पीछे पार्टी द्वारा उनके बेटे रोहित शेखर के लिये विधानसभा चुनाव का टिकट न दिये जाना है। पहले से ही टिकटों के बंटवारे को लेकर असमंजस में पड़ी कांग्रेस ने कई साल से हशिये पर घकेले तिवारी की अपने बेटे के लिये टिकट की मांग को दरकिनार करना ही सही समझा। हांलाकि बीजेपी का भी कहना है कि तिवारी के पार्टी में आने को किसी सीट की डील से जोड़ के न देखा जाये।
लेकिन राज्य में सत्ता पर काबिज़ होने की राह देख रही बीजेपी ने किसी ज़माने में कांग्रेस के कद्दावर नेता तिवारी को सहारा देने में राजनीतिक समझारी समझी। इसके पीछा कारण भी है, तिवारी उत्तराखंड ही नहीं उत्तरप्रदेश के भी बड़े ब्राहमण नेता के तौर पर जाने जाते हैं। तिवारी के द्वारा अपने कार्यकाल में किये गये कामों के कारण उनकी छवि भी “विकास पुरूष’ के रूप में बनी हुई है। हांलाकि अपनी निजि ज़िंदगी के कारण तिवारी हमेशा ही गलत कारणों से सुर्खियों में रहे और इसी के चलते उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल पद भी गवाना पड़ा था। इसके बाद से ही तिवारी का राजनीतिक वनवास शुरू हो गया था। तिवारी और हरीश रावत की दूरियां जग जाहिर हैं। हांलाकि इन सालों में कांग्रेस ने तो उन्हें भुला दिया लेकिन उनके राजनीतिक कद को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तिवारी को अपने साथ रखने की कोशिसें करते रहे। इसके लिये तिवारी को लखनऊ में राज्य सरकार की तरफ से सुविधाऐं दी गई और खुद मुख्यमंत्री समय समय पर तिवारी का हाल चाल पूछने जाते रहे।
तिवारी इससे पहले भी 1994 में तिवारी ने अर्जुन सिंह के साथ मिलकर इंदिरा कांग्रेस के नाम से अलग दल बनाया था। लेकिन कुछ समय में ही वो वापस कांग्रेस में आ गये। अब ये देखने की बात है कि तिवारी ने बीजेपी का दामन तो थाम लिया है पर देखने की बात ये है कि वो अपने पुत्र के लिये पार्टी से क्या सौगात ला सकते हैं। साथ ही ये भी देखना दिलचस्प होगा कि तिवारी को दरकिनार कर चुकी कांग्रेस को तिवारी अपने राजनीतिक दमखम से चुनावों में कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।