‘संसाधनों, भौगोलिक विषमताओं के हिसाब से नीति बनाने की जरूरत’

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पूरे देश को विकास के एक ही चश्मे से देखना उचित नहीं है। खासकर उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों के लिए उनके संसाधनों और भौगोलिक विषमताओं के हिसाब से अलग नीति बनाने की जरूरत है। यही वजह है कि दिल्ली से देश के लिए चलने वाली एक जैसी योजनाएं हिमालयी राज्यों में आकर फेल हो जाती हैं। ऐसे राज्यों के लिए जल्द अलग नीति व उसके अनुरूप योजनाएं तैयार की जाएंगी। यह बात देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह में नीति आयोग के सदस्य व डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) के पूर्व सचिव डॉ. वीके सारस्वत ने कही।

डॉ. सारस्वत ने कहा कि हिमालयी राज्यों के लिए अलग नीति बनाने के लिए आयोग हर राज्य में दौरा कर रहा है। इस कड़ी में जल्द उत्तराखंड का दौरा कर ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल पर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में बैठक की जाएगी।
उत्तराखंड के मौजूदा हालात पर प्रकाश डालते हुए डॉ. सारस्वत ने कहा कि यहां चीड़ की पत्तियां जंगलों में आग का कारण बन रही है, जबकि इनका इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन में किया जा सकता है। बायोमास गैसिफिकेशन या बायो मिथेनाइजेशन के माध्यम से इस तरह के जैव संसाधनों का प्रयोग ऊर्जा तैयार करने में किया जा सकता है।
इसके अलावा उत्तराखंड में इकोटूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं और जरूरत इस बात की है कि टूरिज्म को इकोफ्रेंडली टूरिज्म से जोड़ा जा सके। राज्य के निचले हिस्सों में फसल उगाने व ऊंचाई वाले हिस्सों में हॉर्टिकल्चर व फ्लोरीकल्चर की संभावनाओं को तलाशा जा सकता है। उत्तराखंड जैसे राज्य में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए दोहरी शिक्षा व्यवस्था लागू किए जाने की जरूरत है, जिसमें वोकेशनल कोर्स भी साथ-साथ चलते रहे हैं।
उद्योग सेक्टर के लिहाज से भी उत्तराखंड में आमूलचूल परिवर्तन किए जाने की जरूरत है, यहां फार्मा इंडस्ट्री की जगह आइटी पर फोकस किए जाने की जरूरत है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल की बैठक में इन्हीं तमाम संभावनाओं को लेकर विस्तृत मंथन किया जाएगा। बैठक में नीति आयोग की तरफ से तय किए गए तीन, पांच और सात साल के विजन डॉक्यूमेंट पर भी बात होगी। हालांकि इसको लेकर सभी राज्यों के मुख्य सचिव से नियमित तौर पर भी बात की जाती है।