नई तकनीक से जुडकर करें शोधःराज्यपाल 

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रुद्रपुर, देश में समग्र भौतिक के लिए खेती-किसानी को सरसब्ज़ बनाना होगा, जिसमें युवा वैज्ञानिकों को मुख्य भूमिका निभानी होगी। यह संदेश विवि के गांधी हॉल में आयोजित पंतनगर विवि के 31 दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि प्रदेश के राज्यपाल एवं विवि के कुलाधिपति डॉ. कृष्णकांत पॉल ने दिया।

 उन्होंने कहा कि पंतनगर विवि ने खाद्य सुरक्षा में अग्रणीय भूमिका निभाई है, लेकिन अब बदलते व अनिश्चित मौसम, संसाधनों की कमी, मिट्टी की खराब होती सेहत और कृषि के लाभप्रद नहीं रहने के रूप में खेती-किसानी की राह में नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। वैज्ञानिकों, खास तौर पर युवा वैज्ञानिकों एवं किसानों को मिलकर इन चुनौतियों का सामना करना होगा। डॉ. पॉल ने कहा कि कृषि को लाभकारी बनाए बिना देश में भौतिक विकास संभव नहीं है। अगर इस दिशा में अभी नहीं संभले तो देश के 130 करोड़ लोगों का जीवन खाद्य एवं पोषण की समस्या से घिर जाएगा। उन्होंने सूबे में प्राकृतिक संसाधनों को खोजने के लिए जीआईसी के माध्यम से सर्वे करने ज़रूरत बताते हुए वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे कम पानी में पैदा हो सकने वाली गेहूं, धान, गन्ना और कपास की प्रजाति खोजें। साथ ही उन्होंने बूंद-बूंद सिंचाई तकनीक को बढ़ावा दिए जाने की बात की।
महामहिम ने कहा कि सूबे में करीब 13 प्रतिशत ही पर्वतीय खेती है और किसानों के पास एक हैक्टेयर से भी कम भूमि है और वो भी वर्षा आधारित है। ऐसे में वहां पैदावार बहुत कम होने के कारण मनुष्य और पशुओं के लिए खाद्य समस्या बनी रहती है, जोकि पलायन का भी एक मुख्य कारण है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में औषधीय एवं सगंधी फसलों, मोटे अनाज, फल, फूल व सब्ज़ी आदि की खेती को बढ़ावा दिए जाने, उनके उत्पादों की प्रसंस्करण से गुणवत्ता बढ़ाने, किसान समूह बनाए जाने व ग्रामीण विकास को मुख्य फोकस बनाने का सुझाव दिया।
डॉ. पॉल ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में राज्य की पंजीकृत देसी बदरी गाय पर शोध से दूध बढ़ाकर दूध की समस्या से निजात पाई जा सकती है। इसके लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से बद्री गाय के दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने, उसके पालन को बढ़ावा देने तथा पर्वतीय पशुपालकों को प्रशिक्षित किए जाने पर ज़ोर दिया। राज्यपाल डॉ. पॉल ने कहा कि खेती के माध्यम से देश में भौतिक विकास की जिम्मेदारी युवा वैज्ञानिकों के कंधों पर है। उन्हें इस संबंध में न केवल सतत रूप से जागरुक रहना होगा, बल्कि नई-नई तकनीकों से अपने आपको जोड़े रखते हुए नए शोध को सामने लाना होगा।