नियमों की जमकर उडाई धज्जियां, घोटालेबाजों ने बटोरे करोडों

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    एन एएच 74 में हुए भूमि घोटाले की जांच में हर दिन नये पहलू जुडते जा रहे हैं। कहीं अकृषि भूमि दिखाकर दस गुना लाभ कमाने का मामला सामने आता है तो कहीं अधिकारियों की मिलीभगत, वहीं अब एनएच के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठने से ये बी जाहिर हो गया है कि मुआवजे के लिए अधिकारियों ने स्थलीय निरीक्षण किया ही नहीं और कागजों में हाी कोरम पुरा कर करोडों रुपये की बंदरबांट कर ली।जिसके चलते अब एनएच 74 में भूमि अधिग्रहण के समय हुए नोटिफिकेशन में गड़बड़ी सामने आ रही है।

    बगैर भूमि का निरीक्षण किए नोटिफिकेशन कर दिया गया। यदि थ्री डी से थ्री जी में बदलाव को घोटाले का बिन्दु माना जाता है तो पूरे प्रदेश के ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों में हुए भूमि अधिग्रहणों पर सवाल उठने लाजमी हैं। दरअसल, नोटिफिकेशन में जमीन की प्रकृति एवं प्रकार, रकबा स्पष्ट नहीं होने के कारण सक्षम अधिकारी से आख्या प्राप्त करके थ्री जी में बदलाव किया गया, जो सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है। एनएच 74 में जिस समय भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना थ्री ए जारी की गई, उसमें सिर्फ खसरा नंबर का जिक्र था। थ्री सी के आदेश एवं थ्री डी की अधिसूचना से भी यह बात साफ है कि अधिकारियों ने जमीन का स्थलीय निरीक्षण नहीं किया गया। थ्री ए, थ्री सी एवं थ्री डी में भूमि के प्रकार एवं भूमि की प्रकृति के संबंध में स्थिति स्पष्ट नहीं की गई। निजी भूमि को भूमि की प्रकृति में कृषि दर्शाया गया और भूमि का प्रकार सरकारी होने की स्थिति में भूमि की प्रकृति गैर कृषि दर्शाया गया। सामान्यता ऐसे मामले पाए गए जिनमें एक खसरा नंबर में सहखातेदार भी थे।

    किसके हिस्से में कितनी जमीन है? जमीन की प्रकृति व प्रकार क्या है? यह स्पष्ट ही नहीं था। भूमि के प्रकार, प्रकृति, रकवे के संबंध में सही जानकारी के लिए सक्षम अधिकारी से आख्या तक नहीं ली गई।  ऐसे में जब मुआवजा धनराशि तय करने की प्रक्रिया शुरू की गई तो यह पता लगाना जरूरी था कि किस खसरे में कितने सह खातेदार हैं। जमीन कृषि है अथवा अकृषि? इसके लिए विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी ने संबंधित उपजिलाधिकारी एवं तहसीलदार की रिपोर्ट मंगाई। उसके बाद ही प्रतिकर तय किया गया। जानकारों की मानें तो एक्ट में इस बात का उल्लेख नहीं है कि भूमि की प्रकृति प्रतिकर निर्धारण करते समय थ्री डी के अनुसार ली जाए। एसआईटी की जांच का एक बिन्दु यह भी है कि थ्री डी से थ्री जी में बदलाव किया गया। यदि इसे घपला माना जाता है तो अन्य स्थानों पर हुए भूमि अधिग्रहण भी जांच के दायरे में आ जाएंगे, क्योंकि लगभग यह प्रक्रिया सभी स्थानों पर अपनाई जाती है।

    हालांकि भूमि अर्जन एवं पुनर्वासन में उचित प्रतिकर एवं पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 में भी स्पष्ट ही है कि पारदर्शिता के साथ उचित प्रतिकर निर्धारित किया जाए। इसके बाद भी विकल्प खुले हैं कि यदि किसी को उचित प्रतिकर नहीं मिलता है तो वह आर्विटेटर के यहां और उसके बाद कोर्ट में अपील कर सकता है।