सीमांत के गांवों का दर्द सुनने वाला नहीं कोई

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पिथौरागढ(झूलाघाट) पहाडों का जीवन कितना कष्टकारी होता है ये बयां करता है भारत नेपाल सीमा से सटे गांवों का दर्द, जहां आवाजाही के लिए एक अदद पुल की दरकार में लोग सालों से जान जोखिम में डाल कर नदी पार करते हैं, और हर दिन उपर वाले से यही दुआ करते है कि उनके साथ कोई हादसा ना हो, मगर सरकारी तंत्र है कि इन गांवों के दर्द को समझने का नाम नहीं ले रहा है।
हम बात कर रहे हैं भारत और नेपाल के पहाड़ी जिलों के बीच आवागमन की सुविधाओं की कमी की जहां मजबूरी में आज भी लोग खतरनाक तरीकों से दोनों देशों के बीच सीमा बनाने वाली काली नदी को पार करने को मजबूर हैं। इस नदी पर कई स्थानों पर नए पुल बनाने के प्रस्ताव वर्षो से लटके हुए हैं। भारत और नेपाल दोनों देशों के सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की एक दूसरे देशों में रिश्तेदारियां हैं। कारोबार भी साझा है। भारत से कई वस्तुएं नेपाल जाती हैं तो कई नेपाल से भारत आती हैं। इसी से लोगों की रोजी रोटी चलती है। इस क्षेत्र में सीमा बनाने वाली काली नदी में गब्र्याग के पास सीता पुल, धारचूला, बलुवाकोट, जौलजीवी और झूलाघाट में आवाजाही के लिए झूलापुल बने हुए हैं, लेकिन लगभग 150 किमी. लंबी इस सीमा में मात्र पांच स्थानों से ही आवाजाही की सुविधा लोगों पर भारी पड़ रही है। मजबूरी में लोग नदियों में ट्यूब डालकर आवागमन कर रहे हैं।
भले ही तस्कर भी इसका फायदा उठाते हैं। सुरक्षा बलों की नजर से दूर ऐसे क्षेत्रों से जमकर माल की तस्करी होती है। इन खतरनाक तरीकों से नदी पार करने के चलते कई बार दुर्घटनाएं होती रहती हैं और लोग मारे जाते हैं, बावजूद इसके दोनों देशों ने अब तक सीमा पर पुलों की संख्या बढ़ाने के लिए कोई पहल नहीं की है। इस सीमा में ऐलागाड़ और सुनसेरा में झूलापुल के साथ ही झूलाघाट में मोटर पुल का प्रस्ताव वर्षो पूर्व बन चुके हैं।

लेकिन दर्जन भर से अधिक गांवों की यही परेशानी है कि समय पर उन्हे चिकित्सा सुविधा भी नहीं मिल पाती है और लोगों को कई किलोमीटर का रास्ता तय कर अपने काम करने पडते है, कई बार सरकार और शासन को अपना दर्द बयां कर चुके इन गांवों का दर्द आज तक किसी ने नहीं समझा।