अब फिर से मिट्टी उगलेगी सोना

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    माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोहे, एक दिन एसा आयेगा मैं रोंदूंगी तोहे, ये कहावत कभी कुम्हारों पर सटीक बैठती थी जब विदेशी उपकरणों ने कुम्हारों के हाथों की कारीगरी से बने दिये और बर्तनों की बिक्री कम कर दी थी… लेकिन समय बदलते हुए फिर से कुम्हारों के कारोबार में रौनक लौट आयी है और कुम्हारों के हाथों से बने मिट्टी के बर्तन, दीये और मंदिरों की मांग फिर से बढते ही कुम्हारों के चेहरे पर रौनक लौट आयी है।

    दीपावली की तैयारियां जोरों पर हैं। इस दौरान चल रहे चायनीज सामान के बहिष्कार के मद्देनजर 
    चाइनीज झालर नहीं बल्कि मिट्टी के दीये लोगों की पसंद बन रहे हैं। दीयों की खरीदारी तेज होने से कुम्हार भी काफी गदगद है। इस कला को जीवित रखने वालों का कहना है कि इस वर्ष चाइना निर्मित झालर के मुकाबले मिट्टी के दीये और बर्तन की ज्यादा मांग बड रही है,जो डूबते इस कारोबार के लिए शुभ संकेत हैं।
    लम्बे समय से मंदी की मार झेल रहे कुम्हारों के लिए इस दिपावली में रौनक लौटी है, हर पीछले तीस सालों बाद मिट्टी को रोंदने वालों को उनकी मेहनत का सही दाम मिल रहा है और बाजार में मांग बडते देख कुम्हारों के चेहरे भी खिले हुए है, तीस प्रतिशत हुई कारोबार में वृद्धि को जहां कुम्हार इसे चाईना प्रोडक्ट का विरोध और स्वदेशी के प्रति जागरुकता मान रहे हैं तो दुसरी ओर इस कारोबार से मुंह मोड रही युवा पीढी को भी वापस इस कारोबार में अपना भविष्य दिखने लगा है, कुम्हारों के हाथों से बने बर्तन, दीये, मटके,कलश, मंदिर और मूर्तियों बाजार में मांग जमकर बड रही है, जिससे इस कारोबार में कुम्हार जाति के लोग वापस लौट रहे है।
    जबकि चाईना प्रोडक्ट बेचने वाले कारोबारी इस बार मंदी की मार झेल रहे हैं पहले जीएसटी के चलते बढी कीमतों ने जहां बाजार की चकाचौंध को फीका किया है, तो दूसरी ओर चाईना प्रोडक्ट का विरोध इन कारोबारियों के चेहरों पर भी साफ झलक रहा है।