लेफ़्टिनेंट जेनरल रावत की नियुक्ति का मामला अब राजनीतिक रंग लेता दिख रहा है। कांग्रेस और वाम दलों ने इस मामले पर सरकार से सफ़ाई माँगी है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि “हम जेनरल रावत की क़ाबिलियत पर सवाल नहीं उठा रहे हैं लेकिन सरकार को जवाब देना चाहिये कि क्यों अन्य सीनियर अधिकारियों को छोड़कर जनरल रावत की नियुक्ति की गई है”
सीपीआई ने कहा है कि “ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी नियुक्तियाँ इस तरह की जा रही हैं कि वो सवालों के घेरे में आयें, सेना पूरे देश की है और इसलिये सरकार को सारे देश को इस फ़ैसले में साथ लेना चाहिये”
वहीं बीजेपी ने इस मामले पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया है। पार्टी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा है कि “सेना के मामलों में ऐसे सवाल खड़ा करना सही नहीं है और इससे सेना के मनोबल को ठेस पहुँचेगी।”
लेफ्टिनेंट जनरल रावत की नियुक्ति सबसे वरिष्ठ सैन्य कमान्डर लेफ़्टिनेंट जनरल प्रवीण बख़्शी जो कि पूर्वी कमान के प्रमुख हैं और दक्षिणी कमान के प्रमुख पीएम हरीज को अनदेखा कर कोल की गई है।
सूत्रों का कहना है कि लेफ़्टिनेंट जनरल रावत को चुनने की वजह उनका अनुभव और जम्मू-कश्मीर आतंकवाद विरोधी आपरेशन ,लाईन आफ कंट्रोल के साथ ही भारत-चीन सीमा जैसे दो सेंसिटिव फ्रंट में उनका अनुभव है।
लेफ़्टिनेंट जनरल रावत ने दीमापुर बेस्ड III बल का संरक्षण किया और म्यांमार में उस आपरेशन का नेतृत्व किया था,जिसमें भारतीय सेना के विशेष बलों ने आतंकवादी शिविरों को नष्ट किया और उनके कैंप पर छापा भी मारा था जिसके।
लेफ़्टिनेंट जनरल रावत एक इंफेट्री आफिसर है और दिसंबर 1978 में ग्यारवे गोरखा राइफल्स के अधिकृत पांचवे बटालियन में थे। उन्हें इंडियन मिलिट्री अकादमी देहरादून के बहुत ही आकांक्षित स्वोर्ड आफ आनर से भी सम्मानित किया गया था,जो कि उनके आल राउंड परफारमेंस के लिए था।