बदलते समय के साथ उत्तराखंढ भी 18 साल का हो गया और राज्य के आठारहवे जन्मदिन पर मसूरी में पिछले दो दशक से रहने वाले जोड़े ने राज्य को एक तोहफा दिया है।
समीर शुक्ला और उनकी पत्नी कविता शुक्ला जोकि मसूरी में ‘सोहम हैरिटेज और आर्ट सेंटर चलाते हैं’ दोनों ने अपने अनुभव और पहाड़ी परंपरा को एक पहाड़ी टोपी के रुप में पिरोया है, जिसमे किनारे पर रंगबिरंगी धारियां और उसपर प्रदेश पुष्प ब्रह्मकमल को बहुत ही खुबसूरती से लगाया गया है।
पिछले कई सालों से इस दंपत्ति ने मिलकर उत्तराखंड की परंपरा और यहां की जीवनशैली को बढ़ावा दिया है। चाहे वह उत्तराखंड की पारंपरिक गहने हो, या फिर पहाड़ी वाद्य यंत्र, पहाड़ी कला हो या फिर शिल्प। इस दंपत्ति द्वारा यह पहाड़ी टोपी को लोगों के बीच में लाना कोई चौकाने का विषय नहीं हैं क्योंकि पिछले दो दशक यह दोनों मिलकर उत्तराखंड की सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं।
समीर शुक्ला से टीम न्यूजपोस्ट की बातचीत में बताया कि, “इस टोपी को बनाने का मुख्य कारण था उत्तराखंड की पारंपरिक टोपी को एक नए अवतार में लोगों के बीच लाना। उत्तराखंडी टोपी राज्य की पहचान है उसमें भी ये टोपी गांधी टोपी का ही रुप है।” उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में हर उम्र के लोग बूढ़ा हो या जवान या फिर राजनितिज्ञ सब इस टोपी को पहनते हैं। यह टोपी उत्तराखंड राज्य के लोगों के लिए खास है, बस यही सोच कर सोहम हैरिटेज एंड आर्ट कल्चर के दंपत्ति ने पहाड़ की स्पेशल टोपी को बनाया।
समीर बताते हैं कि, “हालांकि हमे मालूम था कि लोगों को इसे पहाड़ी टोपी की तरह स्वीकार करने में थोड़ी मुश्किल होगी लेकिन आसान राह पर चलने में मजा भी नहीं आता, बस फिर गांधी टोपी में बदलाव के साथ हमने पेश किया ‘पहाड़ी टोपी’ जो अपने आप में राज्य का प्रतीक है।” टोपी में इस्तेमाल हुए चार रंगीन धागे राज्य के अलग-अलग संस्कृति को दर्शाते हैं वहीं पीतल का ब्रह्म कमल ना केवल राज्य पुष्प है बल्कि हिमालय राज्य का सबसे पवित्र फूल है।समीर ने बताया कि, “इस टोपी को बनाने में उन्हें लगभग तीन महीने लगे क्योंकि इसमें इस्तेमाल किया गया कपड़ा अलग-अलग मौसम और अलग क्षेत्रों से लाया गया है।”
इस टोपी को बनाने में सबसे ज्यादा ध्यान युवा और बूढ़े लोगों का रखा गया है और इसके अलावा पर्यटकों के अनुरुप भी इसका डिजाईन एकदम सटीक है।समीर कहते हैं कि टोपी बनाने में हमने कोई बेईमानी नही कि है और जल्द ही हम महिलाओं की पहाड़ी टोपी भी लेकर आऐंगे।
यह टोपी तीन तरह की हैः
- ऊनी
- सर्दियों के लिये
- गर्मियों मे लिये
इन तीनों टोपियों के दाम 275 रुपये से लेकर 400 रुपये तक हैं।
दंपत्ति के 13 जिलों की यात्रा के दौरान राज्य की पोशाक और उनके पारंपरिक गहनों की गहन शोध ने उन्हें पहाड़ी टोपी बनाने में काफी मदद की।तो अगली बार जब आप मसूरी का रुख करें तो यहां से उत्तराखंड की यह सुंदर यादगार पहाड़ी टोपी ले जाना ना भूलें।