उजड़ने को तैयार है फिर से सभ्यता और संकृतिक धरोहर

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बांधों में डूबता उत्तराखण्ड आखिर कब तक विस्थापित होता रहेगा, घरों को उजाड कर आखिर कब तक घर रोशन होते रहेंगे, अपनी सभ्यता और संस्कृति को पानी में डूबोकर आखिर कैसे जी सकेंगे, कई एेसे सवाल उनके जहन में कौंधते हैं जिन्हे अपना घर छोड कर दुसरी जगह जागर विस्थापित होना पडेगा और बचपन की यादों को पानी में डूबते हुए देखना होगा। सैकड़ों बाँधों से लगभग पूरा नक्शा ही काला हो गया था। बाँधों से उभरी यह कालिख प्रतीकात्मक रूप में तथा कथित ऊर्जा प्रदेश के भविष्य को भी रेखांकित करती है।
उत्तराखण्ड में सबसे बड़ा बाँध टिहरी बाँध है। बाँध निर्माण के पिछले कई वर्षों से इस पर बनी जलविद्युत परियोजना के जो परिणाम आ रहे हैं, उससे उत्तराखण्ड सरकार की ऊर्जा नीति सवालों के घेरे में आ गई है। दावा था कि टिहरी बाँध 2,400 मेगावाट विद्युत का उत्पादन करेगा। लेकिन पिछले कई सालों से टिहरी जल विद्युत परियोजना निर्धारित उत्पादन से कम मेगावाट विद्युत का उत्पादन ही कर पा रही है। सैकड़ों गाँवों, हजारों लोगों के विस्थापन के साथ उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण नागर सभ्यता को झील में डुबो देने वाले इस बाँध का औचित्य क्या है, यह समझ नहीं आ रहा है। बाँध से पूरे उत्तराखण्ड के विकास की उम्मींदें लगाए लोग विद्युत के इतने कम उत्पादन को देख हतप्रभ हैं।
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नेपाल-उत्तराखण्ड के बीच बहने वाली काली नदी पर टिहरी से तीन गुना बड़े पंचेश्वर बाँध (पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना) पर सरकारी तौर पर सहमति नजर आ रही है। भारत-नेपाल का 230 किमी. का सीमांकन करती महाकाली नदी पर पंचेश्वर में बनने वाले इस बांध के प्रस्ताव ‘भारत-नेपाल महाकाली संधि’ पर 12 फरवरी 1996 को दोनों देशों के हस्ताक्षर हो चुके हैं। नवम्बर 1999 में काठमांडू में एक संयुक्त परियोजना प्राधिकरण (जेपीओ) गठित की गई। इसके द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को नेपाल में उस समय विपक्षी दल नेकपा (एमाले) ने संसद में पास नहीं होने दिया था। यह जेपीओ भी 2002 में रद्द कर दिया गया। 2004 में दोबारा बनाए जेपीओ की पहली मीटिंग इसी वर्ष दिसम्बर में हुई। लेकिन 2005 में प्रस्तावित इसकी दूसरी मीटिंग नेपाल में आई राजनीतिक अस्थिरता के चलते टल गई। इसके बाद नेपाल में हुए चुनावों में सीपीएन (माओवादी) को अच्छी बढ़त मिली और पुष्पकमल दहल ‘प्रचण्ड’ प्रधानमंत्री बने।
पंचेश्वर बाँध 315 मी. ऊँचा विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाँध होगा। इस बाँध की क्षमता 6,480 मेगावाट आंकी जा रही है। इस परियोजना पर दो चरणों में काम होना है। पहले 315 मीटर ऊँचा बाँध पंचेश्वर में महाकाली और सरयू नदी के संगम से 2 किमी नीचे बनना है। दूसरे चरण में 145 मीटर ऊंचाई वाला बाँध इससे नीचे महाकाली की अग्रगामी शारदा नदी पर पूर्णागिरी में। बाँध की इस बहुउद्देश्यीय परियोजना में भारत और नेपाल का 134 वर्ग किमी क्षेत्र डूब जाना है। इसमें भी 120 वर्ग किमी का क्षेत्र उत्तराखण्ड का है। सिर्फ 14 वर्ग किमी का क्षेत्र नेपाल का डूबेगा। दोनों ही ओर महाकाली और सहायक नदियों की उपजाऊ तलहटी में बसे प्रमुखतः कृषि पर जीवनयापन करने वाले 115 गांवों के 11,361 परिवार प्रभावित होंगे। ‘टिहरी विस्थापन’ से उबर भी न पाए उत्तराखण्ड के लोगों को एक और बड़े विस्थापन से जूझने की तैयारी करनी है। नेपाल ने अपने प्रभावित क्षेत्र के गांवों के पुनर्वास का एक नक्शा भी तैयार कर लिया है। भारत की ओर से क्षेत्रीय लोगों को ऐसे किसी भी नक्शे की जानकारी नहीं है।

विस्थापन से पुनर्वास के अतिरिक्त मध्य हिमालयी क्षेत्र में बनने वाले इस बृहद बांध से कई समस्याएं हैं। भूगर्भवेत्ताओं का मानना है कि ‘पंचेश्वर’ भूगर्भीय हलचलों की दृष्टि से ’जोन 4’ में है। बांध में रोके जाने वाले पानी से यहां तकरीबन 80 से 90 करोड़ घन लीटर का दबाव पड़ेगा। यह दबाव पहाड़ों के भीतर संवेदनशील स्थिति में अवस्थित चट्टानों को धंसाने का काम कर सकता है। इसके कारण बड़े भूकम्पों की आशंका है। विगत 15 वर्षों में मध्य हिमालय के ‘सीसमिक 4 जोन’ में रिएक्टर पैमाने पर 5 अंकों की तीव्रता से ऊपर वाले दस भूकम्प दर्ज हुए हैं। इनमें से पांच भूकम्पों का केन्द्र पंचेश्वर से 10 किमी की दूरी के अंदर ही रहा है। भूकम्पीय खतरों के अतिरिक्त पर्यावरणीय दृष्टि से भी यह बांध मध्य हिमालय के इको सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। इसके अलावा बांध विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े बांधों की उम्र लम्बी नहीं है। इसीलिये इन पर किए जा रहे बड़े निवेशों का कोई भविष्य नहीं है। पंचेश्वर बांध के लिए बनाई गई रिपोर्ट में इसकी उम्र 100 वर्ष आंकी गई है। लेकिन कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बांध केवल 25 से 30 वर्षों में ही नदी के साथ बहकर आने वाले गाद के चलते बेकाम हो जाएगा। ऐसी स्थिति में केवल 25 से 30 वर्षों की एक योजना के लिए सैकड़ों वर्षों से नदियों के किनारे बसे हिमालयी समाज को विस्थापित कर दिया जाना जायज नहीं ठहराया जा सकता।

पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना मुख्यतः

विद्युत उत्पादन के अतिरिक्त, सिंचाई, पेयजल और बिहार व उत्तर प्रदेश में आने वाली बाढ़ पर नियंत्रण के उद्देश्य के लिए बनाई गई है। उत्तराखण्ड का एक बड़ा क्षेत्रफल इस परियोजना के तहत डूब जाना है और एक बड़ी आबादी इससे प्रभावित भी होनी है। भारत में भी इसका विरोध करने वाले आंदोलनकारियों में इससे पहले टिहरी बांध के विरोध में शामिल भूगर्भवेत्ता, पर्यावरणविद, संस्कृतिकर्मियों, सामाजिक संगठनों के अतिरिक्त यहां की क्षेत्रीय जनता है। एक व्यापक प्रतिरोध के बावजूद भी जिस तरह टिहरी बांध को बनने से नहीं रोका जा सका, उस तरह ही पंचेश्वर बांध को बनने से रोका जाना असम्भव तो नहीं पर कठिन बहुत है