मोहम्मद इकबाल की ये पंक्तिया ” खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ,खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ” कुछ इसी तरह के हौसलों को लेकर अलंकृता बनर्जी ने अपने जीवन के नए अध्याय को लिखना शुरू किया। बचपन में माँ का साया और 21 वर्ष की उम्र में पिता का साया उठने के बाद भी कभी हिम्मत नहीं हारी अपने छोटे भाई – बहन के साथ कानपूर से ऋषिकेश तक का सफर तय करा।
ऋषिकेश में अपने दोस्तों और सहपाठियों की मदद से २ जनवरी 2013 में ‘पंख द क्रिएटिव स्कूल’ की स्थापना की एक ऐसा स्कूल जो स्लम एरिया के 150 बच्चों के लिए बेसिक शिक्षा के साथ साथ अंग्रेजी और कंप्यूटर कि निशुल्क शिक्षा के सपनों को साकार करने में जुट गया। वर्तमान में छात्रों की संख्या में भी इजाफा हो गया है और पंख में प्ले ग्रुप से लेकर छठी कक्षा तक 80 प्रतिशत छात्र ऐसे है जो मलिन बस्तियों से आते है और इनके परिवार की मासिक आमदनी 5000 रुपये से अधिक नहीं है।
ये उन परिवारों के बच्चे है जो शिक्षा के बारे सोचते ही नहीं है और रोज मजदूरी ध्याड़ी या कूड़ा बीनने का काम करते है। इसके अलावा अलंकृता बनर्जी ने मलिन बस्तियों की महिलाओ को स्वालंभी बनाने और स्वरोज़गार से जोड़ने के लिए 50 महिलाओ को प्रौढ़ शिक्षा से जोड़ा साथ ही इन महिलाओ को वेस्ट पेपर और जूट से सामान बनाने का भी प्रशिक्षण दिया हैं।
आज यें महिलाये खुद के हस्ताक्षर, पढ़ाई-लिखाई के साथ साथ खुद के रोज़गार से भी जुड़ गयी। अलंकृता बनर्जी के अनुसार, “शुरू-शुरू में काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ा, लेकिन परिवार के संस्कार और दादा-पिता से समाज सेवा के विरासत में मिले जसब्बे ने उनके कदम नहीं लड़खड़ाने दिए।”
आज पंख कई परिवारों के सपनो में शिक्षा की उड़ान भर कर नयी मंजिले तय कर रहा है।