उत्तराखंड में अवसरवाद और वंशवाद की नई इबारत

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देश को पवित्रता की मानक नदी गंगा देने वाले राज्य उत्तराखंड में भाजपा ने लोकतंत्र में अवसरवाद, वंशवाद और दलबदल की नई इबारत लिख डाली है। उसने 64 सीटों के लिए सोलह जनवरी को जिनकी उम्मीदवारी घाेिशत की है उससे साफ है कि राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए वह सरासर बेकरार है। इसीलिए उसने न सिर्फ 37 साल से अपना नाम-निशान ढो रहे कार्यकर्ताओं को चैतरफा फैली बर्फ में लगा कर दलबदलू कांग्रेसियों को बड़े पैमाने पर अपने टिकटों से नवाज दिया बल्कि बेटे-बेटियों की वंशबेल भी कमल छाप के सहारे पहाड़ पर चढ़ाने की पहल कर दी। सत्ता की इस अंधी दौड़ में कम से कम गढ़वाल में तो भाजपा ने अपना पूरी तरह कांग्रेसीकरण कर लिया। भाजपा ने सत्ता की अंधी दौड़ में अवसरवाद, वंशवाद, दलबदल, धनबल आदि उन तमाम कुत्सित प्रवृत्तियों को गले लगा लिया है जिनके लिए वह अपने पूर्व अवतार जनसंध सहित पिछले 65 बरस से कांग्रेस को कोसती आ रही है। दिलचस्प यह है कि उत्तराखंड के पितृ राज्य उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सपा और कांग्रेस पर कुनबापरस्त होने का आरोप लगा रहे थे लगभग उसी समय उनके विष्वस्त पार्टी अध्यक्ष अमित षाह इस पहाड़ी राज्य के दलबदलू कांग्रेसियों और अपने भी नेताओं के बेटे-बेटियों के लिए पार्टी टिकटों का फैसला कर रहे थे। सोलह जनवरी की सुबह तक कांग्रेस सरकार के मंत्री और कद्दावर दलित नेता यशपाल आर्य दोपहर को जब भाजपाई हुए तो पार्टी ने षाम में सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनके साहबजादे को भी आनन-फानन पार्टी उम्मीदवार घोशित कर दिया। इसके अलावा आपदा का माल हड़पने का आरोप लगा कर कल तक जिस विजय बहुगुणा को पार्टी कलंकित कर रही थी उन्हीं के बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से पार्टी टिकट दे डाला। इस तरह भाजपा ने गढ़वाल से निकल कर देष के बड़े नेता बने हेमवतीनदन बहुगुणा की तीसरी पीढ़ी की बेल भी पहाड़ पर चढ़ाने का पाप लोकतंत्र में अपने सिर मढ़ लिया। अपने ही सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूड़ी की बेटी ऋतु खंडूड़ी को भी भाजपा ने यमकेष्वर से पार्टी उम्मीदवार बना दिया है। इस तरह भाजपा ने राज्य में सत्ता पाने के लिए हरेक हथकंडा आजमाने का जो कांग्रेस से भी दो कदम आगे जाकर अवसरवादी जुआ खेला है वह कहीं उसके लिए दुधारी तलवार साबित न हो जाए। सत्ता के इस लालच में भाजपा ने अपनी चोटी खींचने के लिए अपनी धुर विरोधी कांग्रेस को भी भरपूर मौका दे दिया है। अब देखना यह है कि इन सब हथकंडों के लिए बदनाम कांग्रेस क्या भाजपा से अलग दिखने के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव में शुचिता और संयम की राज्य में क्या कोई नई लकीर खींच पाएगी?