वो कहते हैं ना कि जो आप पर बीती होती है वो कोई कभी नहीं भूलता,लेकिन उस आप बीती से बहुत कम लोग सीख लेते हैं और आगे बढ़ते हैं।आज हम आपकी मुलाकात कराते हैं एक ऐसी शख्सियत से जिसने अपनी आप बीती से सीखा और अपने जैसे कई लोगों का जीवन सवारा।
देहरादून के अम्मावाल की रहने वाली 40 साल की पूजा तोमर दस साल से सरस्वती सजगराती स्वंयसंस्था समूह चला रही है।पूजा आज दो बच्चो की मां है और एक मेहनती महिला के रुप में समाज में अपनी पहचान बना चुकी है। पूजा से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि ””दस साल पहले जब यह सब शुरु हुआ तो हम केवल 2 महिलाएं थी और आज देखते-देखते 40 से 50 महिलाएं इस समूह से जुड़ गई हैं। इन सभी महिलाओं में एक डोर है जो इन्हें जोड़ती है और वो यह है कि यह सब महिलाएं बहुत ही जरुरतमंद और उपेक्षित हैं।
आज इन महिलाओं का समूह पहाड़ी दालें बेचता है,पहाड़ी मूली,बथुआ,पालक की बड़िया,अलसी के लड्डू,पापड़ और साथ ही इन्होंने 2012 में घर-घर जाकर केटरिंग भी शुरु की है।इसके अलावा पूजा की टीम सूरजकुंड मेला,मुंबई कौथिग,परेड ग्राउंड देहरादून में भी स्टाल लगाते हैं।
अपनी यात्रा के बारे मे पूजा बताती है, मेरी लव मैरिज हुई और मुझे मेरे परिवार और ससुराल से कोई सपोर्ट नहीं मिला,मैंने पढ़ाई भी आधे में छोड़ दी,बहुत संघर्ष किया और तब जाकर मुझे ये मौका मिला है,मैं अपने साथ कई लोगों को सहारा दे रही हूं,और यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
18 साल की उम्र से अपने घर का खर्चा उठा रही पूजा को यह पता भी नहीं चला कि कब वह अपने साथ 40 और महिलाओं का घर भी चलाने लगी,जिनमें से कई को 6-7 हजार रुपए प्रति महीना इस समूह से मिलता है।पूजा बताती है जब मेरी बेटी जागृति पैदा हुई तब मुझे उससे प्रेरणा मिली की इन बच्चों के लिए कुछ करना है,अपना परिवार संभालने के लिए काम करना है।
अपनी सफलता के पीछे पूजा अपनी टीम को श्रेय देती हैं और कहती हैं कि,यह केवल महिलाओं का ग्रुप होने के कारण ,सभी जरुरतमंद महिलाएं यहां सुरक्षित महसूस करती है और अपना घर समझ कर काम करती है।
आज पूजा तोमर एक ऐसा नाम है जिसे लोग जानते हैं और पहचानते हैं। पूजा आगे कहती हैं कि, मै चाहती हूं कि जरुरतमंद लड़कियों को पढ़ाऊं और उनकी शादी करुं जो मुझे नहीं मिला वो सब मैं अपनी बच्चियों को देना चाहती हूं।जो मेरे साथ बीता उससे सीख लेकर मैं सब की मदद करना अपनी जिम्मेदारी समझती हूं।
पूजा आज बहुत सी महिलाओं के लिए एक उदाहरण हैं जिन्होंने जिंदगी से हार नहीं मानी और अपनी मेहनत से ना केवल अपने घर को चलाया,लेकिन बहुतों के घर भी संजोए हैं।