सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को बेंच के बहुमत से ट्रिपल तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक ठहराया है। साथ इस पर 6 महीने की रोक लगाते हुए जल्द से जल्द कानून बनाने के निर्देश दिया हैं। हालांकि खास बात ये हैं कि इस मामले पर भाजपा और कांग्रेस ने एक सुर में इसे महिलाओं की जीत करार दिया है।
सत्तारूढ़ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, ‘तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय, मुस्लिम महिलाओं के लिए स्वाभिमान पूर्ण एवं समानता के एक नए युग की शुरुआत।‘
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कहा, ‘ये बहुत अच्छा निर्णय है और लैंगिक न्याय और लैंगिक समानता की ओर एक और कदम है। वहीं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि ये महिलाओं की जीत है।‘
राज्यसभा सांसद आर.के.सिन्हा ने सर्वोच्च न्यायालय की बेंच के बहुमत से ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक ठहराने के फैसले का स्वागत करते हुए केंद्र सरकार को विशेष सत्र बुलाकर इस पर कानून बनाने की मांग की है। राज्यसभा सांसद आर.के.सिन्हा ने कहा, ‘किसी भी देश में एक ही संविधान, एक ही नियम, एक ही प्रधान होता है। भारत में दो संविधान स्वीकार्य नहीं हैं। किसी भी मुस्लिम देश में दो तरह के कानून नहीं हैं| आज का सर्वोच्च न्यायालय का फैसला ऐतिहासिक है। इससे नौ करोड़ मुस्लिम महिलाओं पर जघन्य अत्याचार रुकेगा।‘
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता इंद्रेश कुमार ने न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह सामाजिक मामला है। विवाह के प्रकार सामाजिक परम्परा होते हैं धार्मिक नहीं। इस्लाम महिलाओं पर अत्याचार की इजाजत नहीं देता। इंद्रेश कुमार ने कहा कि मैं पूछना चाहता हूं कि क्या कट्टरपंथी मौलाना और कांग्रेस इसका (ट्रिपल तलाक) का विरोध करेंगे।‘
विपक्ष की ओर से कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि जो हमने पहले उम्मीद की थी वो अब हुआ है| एक अच्छा फैसला आया है। उन्होंने कहा कि ये फैसला सच्चाई, वास्तविकता और सही इस्लाम को उजागर करता है।
दूसरी ओर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम पतियों को न्यायालय का फैसला मानने की अपील की है। बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय की बेंच के बहुमत से ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक ठहराने के फैसले का स्वागत किया है। बोर्ड ने कहा, ‘मुस्लिम पतियों से अपील है कि न्यायालय का फैसला मानें।‘
लेकिन यह महज संयोग नहीं था, जब ट्रिपल तलाक के मामले में कानूनी दखल दिए जाने की विरोध कर रही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से अधिवक्ता और यूपीए में कानून मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने इसका बचाव किया।
सिब्बल ने ट्रिपल तलाक को आस्था का मामला बताते हुए इसकी तुलना अयोध्या में राम के जन्म से कर डाली। सिब्बल ने कहा, ‘केंद्र सरकार आखिर क्यों मुसलमानों की 1,400 साल पुरानी आस्था पर आधारित ट्रिपल तलाक की संवैधानिकता पर संदेह कर रही है। अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं।’
सिब्बल ने कहा कि समाज में बहुत कुछ प्रथा की आड़ में किया जा रहा है। अदालत यहां यह तय करने के लिए नहीं बैठी है कि दुनिया में क्या पाप है, बल्कि हम कानून के शासन की बात कर रहे हैं। सिब्बल ने हालांकि एक वकील की हैसियत से इस मामले में अपने क्लाइंट का पक्ष रखा था लेकिन कांग्रेस को इस बेहद संवेदनशील मसले पर सिब्बल की दलील पसंद नहीं आई।
विपक्ष पहले की ही तरह कुछ निश्चित कारणों से इस मुद्दे को छूना नहीं चाहता था। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को चुनावी एजेंडा बनाया, तब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के सीताराम येचुरी ने कहा, ‘लोग यूपी चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी को ट्रिपल तलाक दे देंगे।’
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला है, जिससे मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से छुटकारा मिलेगा और तीन हक सम्मान, समानता और समाज में शिक्षा एवं स्वतंत्रता के लिए उनकी यात्रा शुरू होगी। उन्होंने कहा कि सत्यमेव जयते। उन्होंने कहा कि उम्मीद इसके बाद नए भारत के निर्माण में नई भूमिका के साथ वह भी अहम रोल अदा कर सकेंगी।
शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे को चुनौती दी थी लेकिन कोर्ट ने समय की कमी के कारण केवल ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर सुनवाई की।
कोर्ट ने हालांकि यह जरूर कहा कि भविष्य में वह बहुविवाह और हलाला के मुद्दे पर सुनवाई करेगी। वहीं केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि अगर वह ट्रिपल तलाक के सभी तरीकों को निरस्तर कर देती है तो मुस्लिम समाज में शादी और तलाक के लिए वह कानून बनाएगी।
इससे पहले भी अदालतें पर्सनल लॉ को लेकर सवाल उठाती रही है। 1951 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने नारसू अप्पा माली बनाम बॉम्बे मामले में कहा था कि पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत कानून नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि पर्सनल लॉ, कानून के ऊपर नहीं है और इसे अनुच्छेद 13 के तहत लाया जा सकता है जो अप्रासंगिक और बुनियादी अधिकारों के खिलाफ जाने वाले सर्वोच्च न्यायालय को समीक्षा का अधिकार देता है।
ऐसे में ट्रिपल तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने न केवल इन दोनों मुद्दों पर अदालती हस्तक्षेप की संभावनाओं को पुख्ता किया है बल्कि राजनीतिक मायनों में इसने यूनिफॉर्म सिविल कोड की दिशा में आगे बढ़ने की जमीन तैयार कर दी है।