उत्तराखंड ने अपने जन्म के साथ ही राजनीति के कई उतार चढ़ाव देखे हैं। 18 साल के इस युवा प्रदेश में गुटबाजी हमेशा से ही हावी रही है चाहे कांग्रेस हो चाहे भाजपा यही कारण रहा है कि राज्य में विकास की धारा हमेशा से ही बाधित रही है। मोदी की केंद्र में सत्ता संभालते ही अचानक ही उत्तराखंड जैसा छोटा राज्य अपने बौद्धिक प्रतिनिधित्व के चलते देश में अपनी चमक बिखेरने लगा। उत्तराखंड में सत्ता में अपनी गहरी पकड़ बनाए रखने वाले बुजुर्ग नेता धीरे धीरे हाशिए पर जाने लगे और बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को कमान सौंपकर उत्तराखंड में छटनी की बयार को तेज कर दिया।
पार्टी ने राज्यसभा के लिये पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी को चुनकर आने वाले समय में पार्टी दशा और दिशा साफ कर दी है। भविष्य सेकंड लाइन के युवा नेताओं का है जिनसे उत्तराखंड को तेजी के साथ विकास के रास्ते पर ले जाने की उम्मीद की जायेगी। संघ के मार्गदर्शन में इस तरह के युवाओं की एक टोली उत्तराखंड में तैयार हो रही है जो जल्दी ही राज्य की राजनीति को प्रभावित करेगी। इसी कड़ी में अजय टम्टा के बाद युवा नेता अनिल बलूनी को राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करा कर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अपने इरादे और साफ कर दिये हैं।
2014 में चुनाव जीतने के बाद से ही मोदी ने पार्टी औऱ सरकार में युवा नेताओं को बढ़ावा देने की कोशिश की है फिर चाहे पार्टी में 75 साल को अनौपचारिक रिटायरमेंट उम्र करना हो या फिर महत्वपूर्ण पदों पर युवा चेहरों को बैठाना हो। और ये हो भी क्यों न जब देश में युवा मतदाताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। अपने इन नये युवा सिपाहियों के ज़रियो मोदी और पार्टी 2019 के चुनावी रण को भी जांचने के कोशिश करेंगे।
कुछ ऐसी ही कोशिश बीजेपी के विरोधी खेमे में राहुल गांधी भी कर रहे है। कांग्रेस में भी राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद से ही युवाओँ को आगे लाने और पुरानी पीढ़ी के नाताओं को “मार्गदर्शक मंडल” में डालने की कोशिश की जा रही है।
युवाओँ को राजनीति में आगे लाना पार्टियों की ज़रूरत भी है और मजबूरी भी। इससे देश को भी एक नई शक्ति मिलने की उम्मीद की जा सकती है। कांग्रेस और बीजेपी दोनो ही अपनी युवा पीढ़ी को धारदार करने में जुटी है पर किस खेमे का वार ज्यादा घातक साबित होगा ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।