सूबे में नई त्रिवेंद्र सरकार आते ही शिक्षा मंत्री ने शिक्षा में सुधार के कई नियम कायदे तो बना दिए हैं लेकिन जर्जर हो चुके शिक्षा के इन मंदिरों में देश की आने वाले जनरेशन आज भी जान हथेली पर लेकर पढ़ रही है। उत्तराखंड में शिक्षा को लेकर तमाम दावे तो हमेशा किए जाते हैं लेकिन प्राथमिक शिक्षा की स्थिति खासकर सरकारी विद्यालयों में देखने लायक है, ड्रेस कोड और अंग्रेजी शिक्षा की ओर बढ़ते उत्तराखंड प्रदेश के प्राइमरी स्कूल आज बदहाली का शिकार है।
सूबे के शिक्षा मंत्री रोज नए फरमान तो जारी करते हैं लेकिन राजधानी से मात्र 39 किलोमीटर दूर तीर्थ नगरी ऋषिकेश का सबसे प्राचीन स्कूल बरसात के इन दिनों में अपनी हालत पर रो रहा है। 1925 में स्थापित और 1940 में निर्मित राजकीय प्राथमिक स्कूल नंबर 5, ऋषिकेश में शिक्षा का प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, आज भी स्कूल की बिल्डिंग मजबूती के साथ खड़ी हुई है लेकिन बरसात का मौसम आते ही रखरखाव के अभाव में प्राचीन इमारत हर जगह से टपकने लग जाती है।
उत्तराखंड में बारिश अपने साथ कई तरह की मुसीबतें लेकर आती है लेकिन ऐसे में इस आफत की बारिश का सबसे ज्यादा खामियाजा स्कूली बच्चों को उठाना पड़ता है। राज्य भर में प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति किसी से भी नहीं छुपी है, भवन जर्जर स्थिति में पहुंच गए हैं और बारिश होते ही टपक टपक कर वह तालाब में तब्दील हो जाते हैं, ऐसे में स्कूली बच्चे पढ़े तो पढ़े कैसे?
यह हालात हैं ऋषिकेश के आजादी से पहले बने स्कूलों के, ऐसा ही एक स्कूल है प्राथमिक स्कूल नंबर 5 जहां पर बच्चे बारिश में बड़ी मुश्किल हालातों से गुजरते हैं लेकिन शिक्षा विभाग ईश्वर ध्यान ही नहीं देता, उत्तराखंड में शिक्षा मंत्रालय सबसे तामझाम वाला मंत्रालय है जिसमें सबसे ज्यादा शिक्षक और कर्मचारी हैं।
हमेशा किसी ना किसी बात को लेकर शिक्षक संघ का सरकार से गतिरोध चलता रहता है लेकिन राज्य में प्राथमिक स्कूलों के भवनों की दुर्दशा पर ना ही कभी शिक्षक संघ आवाज उठाता है और ना ही शिक्षा मंत्रालय इनकी सुध लेता है आखिर ऐसे में सवाल उठता है इन हालातों में कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे आगे बढ़ेगा इंडिया?