पहाड की लाईफ लाईन पर संकट

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जीवनदायिनी कौशकी, यानि कोसी नदी का अपना ही जीवन संकट में है। हालात इतने विकट हो चुके हैं कि उच्च पर्वतीय इलाकों में अच्छी खासी बारिश के बावजूद कोसी बेदम सी है। योजनाकारों की चूक तथा शोध वैज्ञानिकों के राय सुझाव पर अमल नहीं करने का ही नतीजा है कि कभी सदावाहिनी का जलप्रवाह भविष्य की भयावह तस्वीर पेश कर रहा। ग्रीष्म ऋतु में कोसी का जलप्रवाह न्यून स्तर यानी 50 लीटर प्रति सेकेंड पहुंच गया है। जबकि न्यूनतम प्रवाह किसी दौर में 1000 से भी अधिक रहा। इससे चिंतित शोध वैज्ञानिक कोसी नदी पुनर्जनन प्राधिकरण की पुरजोर वकालत करने लगे हैं।

पहाड़ की लाइफ लाइन कोसी संकटग्रस्त नदियों की सूची में शामिल हो गई है। लगभग 50 साल पहले तक सदावाहिनी नदियों की कुल लंबाई तब 225.6 किमी थी। मगर कालांतर में नदियों के पुनर्जनन को ठोस कदम नहीं उठाए जाने से ये सभी सूख कर मौसमी नदियों में बदल गई हैं। नतीजा, वर्तमान में लंबाई घटकर महज 41.5 किमी रह गई है। मौजूदा हालात इतने बिगड़ा चुके हैं कि कोसी का जलप्रवाह ग्रीष्म ऋतु में 50 लीटर प्रति सेकेंड जा पहुंचा है। चिंता इसलिए भी कि जून में अच्छी खासी वर्षा के बावजूद यह आंकड़ा मात्र 150 लीटर प्रति सेकेंड है, जो बेहद खतरनाक संकेत हैं।

कोसी का उद्गम कौसानी की उच्च पहाडि़यों पर उत्तर-पश्चिम में भाटकोट (भरतकोट) स्थित ‘धार पानी धार’ है। यहां से कभी कोसी की 22 सहायक नदियां निकलती थी। इनमें कौशल्या गंगा, देवगाढ़, रुद्रगंगा व पिनाथ आदि मुख्य हैं जो चनौदा (सोमेश्वर) में मिलकर कोसी के रूप में रामनगर (नैनीताल) को तर करती है। मगर अब अंतिम सांस गिन रही।

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वर्ष 1992 से कोसी बचाने के लिए शोध में जुटे निदेशक नेचुरल रिसोर्सेज डाटा मैनेजमेंट सिस्टम इन उत्तराखंड (कुमाऊं विवि) एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. जीवन सिंह रावत कहते हैं, करीब 25 वर्ष पूर्व कोसी जलागम का न्यूनतम जल प्रवाह 790 लीटर प्रति सेकेंड था। तब प्रो. रावत ने साल दर साल सूखती जा रही कोसी के पुनर्जनन को कार्ययोजना बनाई। अब जाकर जिला प्रशासन, उद्यान, सिंचाई आदि विभागों ने दिलचस्पी दिखाई है। इसी आधार पर प्रो. रावत ने कोसी पुनर्जनन के लिए ‘हेडवॉटर यांत्रिक एवं जैविक ट्रीटमेंट’ प्रोजेक्ट को बीते दिनों अल्मोड़ा पहुंचे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को रूबरू कराया। गैरहिमानी कोसी की बदहाली से संबंधित प्रस्तुति भी दी। साथ ही उन्होंने कोसी नदी पुनर्जनन प्राधिकरण गठित करने का सुझाव भी दिया।

वैज्ञानिक एसएसजे परिसर अल्मोड़ा प्रो. जेएस रावत ने बताया कि कोसी में चेकडैम बनाने से कोई लाभ नहीं। कोसी के पुनर्जनन को उद्गम स्थल से ऊपर रिचार्ज जोन पर जैविक व यांत्रिक उपाय करने होंगे। समय रहते शिखर पर ही चाल-खाल व पोखर बनाने होंगे, तो ही मानसून का वर्षाजल भूगर्भीय जलभंडार तक स्टोर किया जा सकेगा। कोसी नदी के गिरते जलप्रवाह को हल्के में लेना घातक साबित होगा। इसीलिए कोसी को बचाने की जवाबदेही तय करने को पुनर्जनन प्राधिकरण की सख्त जरूरत है। आगे पृथक मंत्रालय की भी जरूरत पड़ेगी।