पर्यावरण: कैसे रह गई कोसी नदी 225 से 60 किमी की

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(देहरादून) उत्तराखंड की तक़रीबन 40% नदियां अपना स्वरुप बदल रही हैं। जिन नदियों को ग्लेशियर का पानी मिलता था, वो मौसमी नदियां बनती जा रही हैं। ये बात कोई एनजीओ या राजनीतिज्ञ नहीं बल्कि सालों से नदियों पर शोध करने वाले विशेषज्ञ कह रहे हैं।

शुक्रवार से ग्राफ़िक एरा में शुरू हुई दो दिवसीय युसर्क राज्य विज्ञानं और प्रौद्योगिकी सम्मलेन के पहले दिन उत्तराखंड की नदियां, तालाब और अन्य जल स्त्रोतों के बारे में चर्चा हुई। प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कहा की उनकी संस्था देहरादून में रिस्पना और अल्मोड़ा की कोसी नदी के पुनर्जीवन पर काम कर रही है। कोसी नदी के ज्यादार जल स्रोत सुख गए हैं वही रिस्पना नदी देहरादून घाटी में अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। रिस्पना के पानी में कोली बैक्टीरिया पाया गया है जो पेट के रोगों की जड़ है। जबकि नदी के गंदले पानी पर दून की बड़ी आबादी अभी भी निर्भर हैं।”

ये बात किसी से छुपी नही है कि रिस्पना का स्वरुप बिगाड़ने में नदी किनारे अतिक्रमण बड़ी वजह है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे एस रावत ने बताया की अल्मोड़ा की कोसी नदी जो ग्लेशियर के पानी से भरी रहती थी अब मौसमी नदी में तब्दील होती जा रही है। कोसी नदी की लम्बाई 60 साल पहले 225 किलोमीटर थी जो अब घटकर 41 किलोमीटर रह गयी है।

कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सी सी पंत ने नैनीताल के प्रसिद्ध नैनी तालाब की स्थिति से रूबरू करवाया। लगातारड्राई सीजनरहने की वजह से तालाब का लेवल लगातार गिर रहा है। प्रोफेसर पंत का का कहना था की नैनी तालाब में हर साल करीब 61 घन मीटर मलबा एवं गरडा समां रहा है जो झील की पारिस्थिकी को प्रभावित कर रहा है। झील को रिचार्ज करने वाली सूखाताल हैं और वो अतिक्रमण की चपेट में है।”  यही नही पड़ोस की भीमताल झील भी लगातार सिकुड़ रही है। झील 30 किलोमीटर से सिकुड़कर 25 किलोमीटर ही रह गयी है।