म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों और बौद्ध भिक्षुओं के बीच सीधा टकराव नहीं है

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म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों और बौद्ध भिक्षुओं के बीच सीधा टकराव नहीं है। अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में रोहिंग्या मुस्लिमों के मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बताकर दरकिनार कर दिया गया। प्रतिनिधियों ने कहा कि समय और परिवेश के आधार पर देश विशेष को फैसला करने का अधिकार है।

काशीपुर में आयोजित सम्मेलन में शामिल अंतरराष्ट्रीय बुद्ध शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष अश्वघोष महाथेरा ने कहा कि, “रोहिंग्या मुस्लिमों का मसला राजनीतिक है, जो जहां है उसे वहीं की परिस्थिति और समय के हिसाब से निर्णय लेने देना चाहिए। म्यांमार में रोहिंग्या और बौद्धों के बीच झगड़ा सिर्फ खान-पान को लेकर है।” इसी बात को लेकर सेना बीच में आई और रोहिंग्या सेना के खिलाफ हो गए। हमारा साफ कहना है कि उकसाने वाले लोगों से बचना चाहिए। करुणा और मित्र भाव से समस्या का समाधान होना चाहिए।

भारत में रोहिंग्या मुस्लिमों को शरण देने के सवाल पर महाथेरा ने कहा कि यह देशों के बीच की राजनीति से संबंधित मामला है। चीन बौद्ध अनुयायी देश है, लेकिन दलाई लामा वहां नहीं जा सकते। यह भारत को ही तय करना होगा कि वह रोहिंग्या के मुद्दे पर क्या फैसला करे। धार्मिक दृष्टि से यही कहा जा सकता है कि आपस के बैर भाव के लिए धर्म में कोई जगह नहीं है। भारत में भी कई मुस्लिम हैं। आपस में प्रेम भाव से रहा जाएगा तो इस तरह के विवाद उठेंगे ही नहीं।

सम्मेलन में शामिल म्यांमार के प्रतिनिधियों ने कहा कि बौद्ध धर्म हिंसा का अनुसरण करने का संदेश नहीं देता। रोहिंग्या के साथ बौद्ध धर्म का कोई बड़ा विवाद नहीं है। विवाद सिर्फ खान-पान को लेकर है। इस विवाद को आपस में बातचीत कर सुलझाया जा सकता है। किसी को मार देना या पूरी तरह से नष्ट कर देना समस्या का समाधान नहीं है। रोहिंग्या के मामले में सम्मेलन में इसके अलावा कोई बातचीत हुई भी नहीं। मीडिया की ओर से कुरेदे जाने पर ही बौद्ध भिक्षुओं की ओर से कुछ कहा गया।