उत्तराखंड में सत्ता की सियायत करने वाली हर राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय पहाड़ से पलायन करने जैसी गंभीर समस्याओं को उठाती है लेकिन जैसे ही सत्ता में आती है तो पलायन की बात भूल जाती है। टिहरी के ग्रामीणों का कहना है कि पहले किरासू गांव में 15 परिवार रहते थे, लेकिन सुविधाओं के अभाव के कारण आठ परिवार पलायन कर गए।
उत्तराखण्ड में पलायन की बात पिछले कई वर्षों से की जाती है लेकिन अब तक इसका असर नहीं दिखा और पलायन जारी है। चुनाव से पहले हर राजनीतिक दल इस मुद्दे को जोरों शोरों से उठाते है लेकिन सत्ता के लोभ में इस विषय को पद आसीन होते ही भूल जाते हैं।
पलायन को रोकने के नाम पर सियासतदां, अधिकारी और कथित समाजसेवी सभी मौके के हिसाब से आलाप-प्रलाप करते रहे, लेकिन इस पलायन की तह तक जाकर उसका निदान करने की ठोस कार्ययोजना आज तक बनाया ही नही गई। अपने घरबार की आजाद हवा छोड़कर शहरों के संकुचित क्षेत्र में आ बसने के पीछे के दर्द को समझा तक नहीं गया।
प्रदेश में बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा से आज भी पहाड़ के लोग कोसो दूर हैं। हालांकि कुछ क्षेत्रों ये सुविधाओं मिल रही है लेकिन संतोषजनक नहीं है। यहीं नही यहां लोगों को घर परिवार चलाने के लिए रोजी रोजगार की समस्यायें बनी रहती है। इस कारण यहां के लोग दूसरें राज्यों में नौकरी पेशा के लिए जाना बेहतर समझ रहे है।
पहाड़वासियों को अलग राज्य तो मिल गया, पर विरासत में वह संस्कार और सोच नहीं मिल पाए जो ‘कालापानी’ को देवभूमि बना पाते। उत्तर प्रदेश से राज्य को मिले अधिकारी-कर्मचारी पहाड़ चढ़ने को राजी नहीं हुए। यहां तक कि जो मुलाजिम पहाड़ी मूल के भी थे, उन्होंने राज्य के मैदानी हिस्सों में ही पांव जमाए और पहाड़ से संबंध सिर्फ मूल निवास-जाति प्रमाण पत्र लेने या फिर किसी ‘दैवी कृपा’ की चाह में अपने कुल देवी-देवता के दरबार में एक-आध घंटा जाकर मत्था टेकने तक ही सीमित रहा।
धनौल्टी के ग्रामीणों का कहना है कि उनकी ग्राम सभा किरासू में 15 परिवार रहते थे, लेकिन सुविधा नहीं होने से आठ परिवार पलायन कर गए। राजस्व गांव कुरियाणा में छह परिवार थे तीन परिवार पलायन कर गये। डाडांगांव में बिजली नहीं होने से लोग आज भी परेशान है।
21 वीं सदी में आज भी पहाड़ के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए पहाड़ छोड़कर पलायन करने को मजबूर हैं।
भाजपा कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियां है और राज्य से लेकर केन्द्र की सत्ता पर इनकी पकड़ रहती है। उत्तराखण्ड में बारी-बारी से इन दोनों की सरकार बनती है। फिर भी पलायन जैसी गंभीर मुद्रा को दूर करने में विफल साबित हो रहे है।
पलायन रोकने के लिए स्वावलंबन और रोजगारपरक शिक्षा की बातें तो हर सरकार और उनके मंत्री करते है लेकिन जमीन पर उतरता दिखाई नही दे रहा है।
बीजेपी की प्रचंड बहुमत से बनी सरकार के नए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में पलायन मुद्दे पर बात की और कहा कि सरकार पूरी कोशिश करेगी की पलायन को रोक सके और युवाओं को सारी सुविधाएं मिल सके।अभी ते शुरुआती दौर है लेकिन क्या सच में यह सरकार पलायन के लिए कुछ करेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।