मान्यता के लिए ‘खेल’ नहीं कर सकेंगे स्कूल

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देहरादून। अब स्कूलों को व्यवस्थाएं चाक चौबंद रखनी होंगी। ऐसा न करना उनकी मान्यता के लिए भारी पड़ सकता है। सेंट्रल बोर्ड आॅफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने मान्यता के नियमों में बदलाव किया है। नए नियम के मुताबिक अब हर पांच साल में स्कूलों में बोर्ड से मान्यता लेनी होंगी।

सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन ने अपने मान्यता संबंधी आवेदन देने की प्रक्रिया में बदलाव किया है। आने वाले दिनों में बोर्ड से संबद्ध किसी भी स्कूल को स्थाई मान्यता नहीं मिलेगी। स्कूल को 2019-2020 सेशन से नए नियमों के मुताबिक मान्यता के लिए आवेदन करना होगा। मौजूदा नियमों की बात करें तो अभी तक 15 साल पुराने स्कूल को स्थाई मान्यता मिल जाती थी। जबकि, नए स्कूलों को हर पांच साल में मान्यता के लिए आवेदन करना होता था। लेकिन, नए नियम के तहत सभी नए-पुराने स्कूलों को हर पांच साल में सीबीएसई से मान्यता लेनी होगी। स्कूलों द्वारा आवेदन करने पर बोर्ड की ओर से प्रोविजनल एफिलिएशन प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। यदि किसी स्कूल का एफिलिएशन 2019 में खत्म हो रहा है तो उसे साल 2018 से ही सारा डॉक्यूमेंटेशन करके सीबीएसई को भेजना होगा ताकि 2019 में स्कूल की मान्यता खत्म होने से पहले ही उसे प्रोविशनल एफिलिएशन मिल जाए। सभी जानकारी तय समय से पहले ही देनी होगी।
नहीं हो सकेगा कोई खेल
अभी तक स्कूल कई बार मान्यता हासिल करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं। इनमें कई बार स्कूल फैकल्टी और संसाधनों तक को महज मान्यता भर के लिए अपयोग में लाते हैं। मान्यता मिलते ही किराए के संसाधनों और काम चलाउ शिक्षकों से काम लेते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा। जिंप पायनियर स्कूल के प्रधानाचार्य जगदीश पांडे का कहना है कि बोर्ड ने यह कदम कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उठाया है। बीते कुछ वक्त में स्कूलों में घटित घटनाओं के बाद यह महसूस किया गया कि स्कूल प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभा रहे हैं। स्कूल को इस बात का एहसास रहे कि यदि वे किसी तरह की लापरवाही बरतते हैं तो उसकी मान्यता खत्म की जा सकती है। अभिभावक दीपिका चौहान का कहना है कि पांच साल में मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया स्कूलों के लापरवाही भरे रवैये पर लगाम लगाने का कार्य करेगी।
मानकों में नहीं कोई बदलाव
बोर्ड के हर पांच साल में मान्यता देने के नियम के बाद स्कूलों में आपनी व्यवस्थाओं को चाक चौबंद रखना ही होगा। स्कूलों को हर पांच साल में नया एफिलिएशन बिल्कुल उसी तरह लेना होगा, जिस तरह पहली बार स्कूल शुरू करते वक्त लिया था। यानी स्कूल की इमारत की डिटेलिंग, सुरक्षा मानक, बाउंड्रीवाल, इंटरनेट, क्लासरूम, स्टूडेंट्स और टीचर्स की संख्या, स्टूडेंट्स, टीचर्स रेशियो, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्पोर्ट्स ग्राउंड हाइजीन, स्कूल एक्टिविटीज, स्कूल का रिजल्ट, टीचर्स की क्वालीफिकेशन, बस में सुरक्षा मानक, लेबोरेट्री आदि जैसी जानकारी रिपोर्ट बोर्ड को भेजनी होगी।
नियमों को लेकर बोर्ड गंभीर
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन ने स्कूल्स द्वारा गाइडलाइंस की अनदेखी के लिए अब सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। बीते दो सालों की बात करें तो अकेले सीबीएसई देहरादून क्षेत्रीय कार्यालय ने कई स्कूलों की मान्यता को खत्म किया। बोर्ड द्वारा गाइडलाइन की अनदेखी करने वाले करीब आधा दर्जन स्कूलों की मान्यता रद्द की जा चुकी है। दो सालों की बात करें तो साल 2015 में मेरठ, बुलंदशहर और सहारनपुर के स्कूलों की मान्यता रद्द की थी।
गाइडलाइंस के मुताबिक ऐसे मिलती है मान्यता
– स्कूलों में एजुकेशन के स्टैंडर्ड को देखा जाएगा।
– स्कूल में इंफ्रास्ट्रक्चर को देखा जाएगा।
– मैनेजमेंट, लीडरशिप के आधार पर भी मार्किंग होती है।
– एक्रीडिटेशन करने वाली एजेंसी और सीबीएसई ऑफिसर्स की रिपोर्ट से तय होता है कि स्कूल को मान्यता दी जाए या नहीं।
– एफिलिएशन न मिलने पर 6 महीने का समय मिलेगा और उसके बाद फिर से एक्रिडिटेशन का प्रोसेस स्टार्ट होगा।
– स्कूल को पांच साल के लिए एक्रिडिटेशन मिलता है।