रास्ते पर पड़ी खंडित मूर्तियों को सहेज कर शिवेंद्र करते है उसका संस्कार

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    हिंदु संस्कृति की एक पहचान तो होती है, घर में एक मंदिर, जिसमें लगभग सभी भगवानों की एक या एक से ज्यादा मूर्तियां होती ही है, लेकिन एक बार जब यह मूर्तियां खंडित हो जाती है तो आप उसका क्या करते हैं?

    जवाब आसान है! किसी पीपल के पेड़ के नीचे या किसी छोटे मंदिर के पास बने चबूतरे पर या किसी नुक्कड़ पर यह खंडित मूर्तियां रख दी जाती हैं।इन मूर्तियां का बाद में क्या होता है किसी को परवाह नहीं क्योंकि अपने हिसाब से आपने उन मूर्तियों को सही जगह रख दिया है। लेकिन हम में से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन खंडित मूर्तियों, पुराने कैलेंडर और भगवान से जुड़ी चीजों को इकट्ठा करते हैं और उसका पूरे रिति रिवाज के साथ संस्कार करते हैं।

    जी हां, देहरादून शहर के शिवेंद्र सिंह एक ऑटो चालक हैं और पिछले 3 महीने से सड़क के किनारे मिले खंडित मूर्तियों को इकट्ठा कर रहें हैं। शिवेंद्र से न्यूज़पोस्ट की हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि, “हमेश से यह बात परेशान करती थी कि लोग खंडित मूर्तियों को कहीं भी क्यों छोड़ देते हैं?” इसके विषय में उन्होंने दून के मेयर विनोद चमोली से मुलाकात भी की। शिवेंद्र ने अपनी पहल के बारे में मेयर को बताया और मेयर ने उन्हें दो-तीन आदमी उपलब्ध कराएं जिन्होंने इस काम में उनकी मदद की। शिवेंद्र बताते हैं कि, “टपकेशवर से लेकर चंद्रमणि तक एक ट्राली से भी ज्यादा खंडित मूर्तियां इकट्ठी की, इसके अलावा नगर निगम से मिले एक कमरे में वह इन सारी मूर्तियों को रखते हैं। इन मूर्तियों में सभी भगवान जैसे कि साई बाबा, शिव जी,मां दुर्गा और भी बहुत सारी मूर्तियां मौजूद होती है।” पिछले तीन महीने से इकट्ठी की हुई इन मुर्तियों को सोमवार को संस्कार कर दिया गया।जिसके लिए शांतिकुंज के पुरोहित सेमवाल जी,डा.ततोदशी,शर्मा जी(नगर निगम अधिशासी अभियन्ता), ए.के चौधरी आदि लोग मौजूद थे।

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    शिवेंद्र कहते हैं कि, “इस आयोजन पर हमने काफी लोगों को बुलाया था लेकिन दुख इस बात का है कि लोग इसके बारे में सोचना ही नहीं चाहते।” शिवेंद्र की इस पहल के लिए प्रेरणा बनी उनका माँ जिनके देहांत को लगभग एक साल हो चुका है। शिवेंद्र कहते हैं कि जब तक मेरी मां जीवित थी मेरा द्यान इन चीजों पर कम जाता था लेकिन समय के साथ मैं इनसे जुड़ता चला गया।

    शिवेंद्र कहते हैं कि कहने को हिंदु धर्म में सबसे ज्यादा भगवान है लेकिन इसके प्रति लोगों की जागरुकता शून्य है। भगवान की मूर्तियों को सालों तक घर में पूजने के बाद एकाएक उसको उठाकर गली नुक्कड़ पर रखना कोई भक्ति नहीं है। शिवेंद्र कहते हैं कि, “इस संबंध में बनाई गई फिल्म ‘पीके’ दिल के बहुत करीब है जिसमें आमिर खान मुख्य भूमिका में हैं।”

    शिवेंद्र ने कहा कि, “अब मैं इस पहल को आगे भी करता रहूंगा क्योंकि इससे और कुछ तो नहीं मन की शांति और मूर्तियों को इधर-उधर ठोकरे खाने से तो बचा ही लूंगा। खंडित मूर्तियों को इधर-उधर रख कर हम केवल अपने धर्म की दुर्गति कर रहे हैं।”

    अपनी इस पहल के माध्यम से शिवेंद्र सबसे कहना चाहते हैं कि अपने घर की की पुरानी और खंडित मूर्तियों को सड़क,नाली,दिवार आदि पर रखने से बेहतर विकल्प है उसको किसी पेड़ के नीचे मिट्टी में दबाना।इससे कम से कम पुरानी मूर्तियां जानवरों का आहार और लोगों के पैरों को नीचे आने से बच जाएंगी।