पहाड़ी संस्कृति को जिंदा रख रहा है मसूरी का ये म्यूजियम

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जहां एक तरफ नेता और तमाम लोग पहाड़ों से पलायन और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही पहाड़ी संस्कृति की बातें तो बहुत करते हैं वहीं ऐसे लोग कम ही देखने को मिलते हैं जो इस संस्कृति को बचाने के लिये कुछ ठोस कर रहे हों।जब पहाड़ की संस्कृति विलुप्त होते दिख रही हो और ऐसे में कोई ऐसा मिले जो इसे संजों रहा हो तो इससे बेहतर कुछ नहीं होता। ऐसे ही एक जोड़ा, पहाड़ो की रानी मसूरी में पहाड़ औऱ उसकी सांस्कृतिक विरासत को संजोने में लगा है ।

सोहम हैरिटेज और आर्ट सेंटर के माध्यम से समीर शुक्ला और उनकी पत्नी डाॅक्टर कविता शुक्ला अपनी विरासत को संजो और संवार रहें हैं। न्यूज़पोस्ट से हुई खास बातचीत में समीर शुक्ला ने बताया कि ”सोहम म्यूज़ियम के लिए रिर्सच और डाटा कलेक्शन का काम 1997 में शुरु हो चुका था लेकिन इसकी औपचारिक शुरुआत 2014 में हुई”। इसके माध्यम से शुक्ला दंपत्ति पहाड़ की सुंदरता और यहां की संस्कृति को लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।इस काम की शुरुआत उन्होंने हिमालय की संस्कृति से की लेकिन अब शुक्ला दंपत्ति का पूरा ध्यान उत्तराखंड पर  केंद्रित हैं।

उत्तराखंड राज्य में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपनी विरासत को संभालने के काम में लगे हैं और एसे ही यह दंपत्ति अपने सोहम म्यूज़ियम के माध्यम से ना केवल क्षेत्रीय लोगों को बल्कि दूर-दराज से आने वाले पर्यटकों को भी पहाड़ की संस्कृति से रुबरु करा रहा हैं। मसूरी के इतिहास के बारे में अगर आप कोई भी जानकारी चाहते हैं तो उसका पता है, सोहम म्यूज़ियम।

समीर म्यूज़ियम के बारे में बताते हैं कि ”दो भागों में बटां यह म्यूजियम आपको पहाड़ की संस्कृति और उसके इतिहास से सराबोर कर देगा”।

soham

इंडोर सेटअप में आप तीन चीजें देखेंगेः

  • पेंटिंगः  डाॅ.कविता शुक्ला जो एक आर्टिस्ट हैं, वह पेंटिंग के माध्यम से उत्तराखंड की विरासत एक बार फिर ताजा करती हैं।
  • फोटोग्राफीः फोटोग्राफी के माध्यम से मसूरी शहर और उत्तराखंड राज्य को आप एक बार फिर से नये अंदाज में देख सकेंगे। पुराने बाज़ार की फोटो, लैंडोर बाजार की फोटो, मसूरी की कुछ ऐसी फोटो जो आपको कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा, वह सब आपको यहा मिल सकता है।
  • आर्टिफेक्ट यानि की शिल्पकृतिः इस भाग में आपको उत्तराखंड के पुराने साजो सज्जा के सामान, वाद्य यंत्र, पुराने समय के बर्तन जिनका मिलना अब नामुमकिन है, यह सारी चीजें यहां देखने को मिलेंगी।

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आउटडोर में आप कुछ और चीजें देख सकते हैंः

  • वुडक्राफ्टः इसमें आप लकड़ी के उपर कि हुई पुरानी संस्कृति के कुछ अंश देख सकते हैं।
  • लोक-कलाः फोल्क आर्ट के माध्यम से इस म्यूजियम की दीवैरों पर आपको वह चित्रकारी देखने को मिलेंगी जो बहुस पहले उत्तराखंड के गांव के घरों में दिवारों पर बनाई जाती थी।इस म्यूज़ियम के माध्यम से समीर ने हर वो कोशिश की है जिससे वह ज्यादा से ज्यादा लोगो तक अपनी परंपरा और संस्कृति को पहंचा सकें।

मूल रुप से उत्तराखंड की चीजों और पारंपरिक परिधान से लेकर हर बात को हल्के-फुल्के बदलाव के साथ लोगों के बीच लाया जा रहा है।इसमें आपको बहुत सी ऐसी चीजें मिलेंगी जो लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। ऊंट की पारंपरिक पेटिंग, वॅाटर पेंटिग आदि लोगों के बीच आर्कषण का केंद्र बना हुआ है।अलग-अलग जगहों से जब पर्यटक घूम कर यहां पहुंचते हैं तो उनके लिए यह एक अलग ही अनुभव होता है।ना केवल पहाड़ के लोग बल्कि टूरिस्ट भी इन चीजों से जुड़ाव महसूस करते हैं।

समीर बताते हैं कि ”सोहम म्यूज़िम केवल आर्ट दिखाने का माध्यम नहीं है, बल्कि अलग-अलग शहरों से लोग यहां आकर रिर्सच और इसके बारे में पढ़ाई भी करते हैं। सोहम म्यूजियम ना केवल एक म्यूजिम है बल्कि लोगों के बीच यह एक ऐसी संस्था हैं जिसपर लोग पढ़ाई करते हैं और इतिहास के पन्नों को दोबारा दोहराते हैं”।

सोहम म्यूज़ियम किसी सरकारी संस्था के अंर्तगत काम ना करते हुए राज्य के भविष्य और संस्कृति के लिए काम कर रहा है।इतना कुछ करने के बाद समीर इसमें काफी कुछ और करना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने तैयारी शुरु कर दी है। हिमालयन जड़ी-बूटी जो विलुप्त हो चुकी हैं और जिनके बारे में लोग भूलते जा रहे हैं उनके लिए सोहम काम करने वाला है।इसके अलावा पशु-पक्षी, सेना और डिफेंस में उत्तराखंड के योगदान के बारे में सोहम म्यूजियम काम करने वाला है।

अपनी इस म्यूजियम के बारे में समीर केवल यहीं कहना चाहते हैं कि ”वह जितना हो सके अपने राज्य की परंपरा,संस्कृति,यहां की विरासत लोगों के बीच में दिखाना चाहते हैं”।