पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले फौजी विजेंद्र गुरुंग गरीबी मे जी रहे जिंदग़ी

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भारतीय सेना के लघु सेवा आयोग (एसएससी) अधिकारी कैप्टन विजेंद्र गुरुंग, जब 1972 में पाकिस्तान की एक जेल से बाहर निकले, तो उन्हें अपने भविष्य को लेकर काफी आशाएं थी। 1971 के युद्ध के दौरान जब पाकिस्तानी सैनिकों ने पंजाब के फाजिलका सेक्टर में भारतीय पलटन पर हमला करने के बाद कब्जा कर लिया, उसके बाद गुरुंग को एक साल जेल में रहने पड़ा।लेकिन जब युद्ध खत्म हुआ तो गुरुंग और उनके जैसे सैकड़ों कैदी जेल से रिहा कर दिए गए।

बीतते समय के साथ साल 2018 में गुरुंग 67 साल के हो गए हैं। अपने जीवनयापन के लिए गुरुंग हर रोज़ संर्घष कर रहे हैं और अपनी जरुरतें पूरी करने के लिए गुरुंग को छोटा-मोटा काम भी करना पड़ रहा है। युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी के बाद भी, गुरुंग पेंशन के लिए मान्य नहीं थे क्योंकि वह सेना में एक शॉर्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर के रूप में सेना में शामिल हुए थे।आपको बतादें कि सेना से पेंशन लेने के लिए, एक अधिकारी को कम से कम 20 सालों के लिए काम करना पड़ता है।

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लेकिन मुफलिसी में दिन काटने वाले रिटार्यड सिपाही गुरुंग के लिए सहायता आनी तब शुरु हुई जब किसी ने सोशल मीडिया पर उनकी गरीबी और गुमनामी को उजागर किया।कुछ पूर्व सैनिकों ने उनके लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए एक डोनेशन अभियान चलाया है और गुरुंग की यूनिट, असम रेजिमेंट 3 की बटालियन ने उनके घर के कुछ हिस्सों की मरम्मत करवाई और एक दरवाजा भी लगाया है जो पहले नहीं था। उन्होंने उनके दैनिक जीवन को और अधिक आरामदायक बनाने के लिए मेज, कुर्सियां, बर्तन और अन्य बुनियादी सुविधाएं दी हैं और साथ ही गुरुंग को एक मासिक वेतनमान भी देने के बारे में सोच रहे हैं।

सेंट जोसेफ अकादमी और किंग जॉर्ज मिलिटरी स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई करने वाले, गुरुंग 1977 में सेवानिवृत्त हुए और अपने गृहनगर देहरादून में बस गए लेकिन नौकरियों की कमी के चलते उन्हें काम मिला नहीं और उनकी सेविंग जल्द ही खत्म हो गई।

देहरादून के बाहरी इलाके में जोहरी गांव में अपने एक कमरे के आवास में गुरुंग से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि, “युद्ध समाप्त होने के बाद मैं असम रेजिमेंट की तीसरी बटालियन में शामिल हुआ और कुछ समय में ही सेवानिवृत्त हो गया। देहरादून में बसने का फैसला करने से पहले मैंने कुछ समय के लिए मुंबई और लखनऊ में भी काम किया था। मैंने यहां और वहां नौकरियां भी कि लेकिन वह ज्यादा कारगर नहीं साबित हुई और मेरे पास अब कोई बचत नहीं है।”

अपने खाली समय में गुरुंग क्या करते हैं? इसपर पूर्व सैनिक ने कहा कि ”उनका दिन अब रेडियो पर संगीत सुनकर और अपने घर की दीवारों पर कोयले से स्केचिंग करने से निकल जाता है।” जोहरी गांव के निवासियों ने कहा कि वे इस बात से अनजान थे कि उनके बीच एक फ्रीडमफाईटर रहते हैं,  जोहरी के ग्राम प्रधान दुर्गेश गौतम ने कहा, “यहां कोई भी उनके बारे में  ज्यादा नहीं जानता है,वह ज्यादातर अपने में ही रहते हैं।”

उत्तराखंड पूर्व सैनिक लीग के अध्यक्ष और ट्राई सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य ब्रिगेडियर रिटार्यड आर.एस रावत ने कहा कि, “हमने गुरंग के लिए एक डोनेशन अभियान शुरू किया है और जिसमें अफ्रीका तक के लोगों ने डोनेशन दिया है। हम उन्हें 10,000 रुपये मासिक राशि भी देंगे, साथ ही हमें आशा है कि सेना मुख्यालय भी गुरुंग की मदद करने के लिए कुछ कार्रवाई करेगा।”