गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है ”गौरैया दिवस पर विशेष”

    इंसानी बस्ती के साथ आपके और हमारे घरो में फुदकने वाली गौरैया आखिर कहा चली ? ये सवाल पुरानी पीढ़ी के साथ नयी पीढ़ी के लिए भी आज चिंता  का सबब बनता जा रहा है। कंक्रीट के जंगलो में तब्दील होते शहर के शहर आज गौरैया की आवाज़ से महरूम हो गए है। आज ये चिड़िया देखे से भी दिखाई नहीं  दे रही और शहरों से  तेज़ी से विलुप्त हो रही है।
    शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती थी । ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। । इसके रहने का एक अलग ही अंदाज होता है। गोरैया रहती तो घोंसले में ही है, पर यह अपना घोंसला अधिकांशतः ऐसे स्थानों पर बनाती है, जो चारों तरफ से सुरक्षित हो। पक्षी प्रेमी  जानकार  प्रतीक पंवार मानते है कि अब लगातार नयी  तकनीकी के प्रयोग ने  गौरैया के रहन सहन पर प्रभाव डाला  है पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपर मार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है।
     
     गौरैया को भोजन में प्रोटीन  घास के बीज और खासकर  कीड़े काफी पसंद होते हैं जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैं। ज्यादा तापमान गौरेया सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है।  खाना और घोंसले की तलाश में गौरेया शहर से दूर निकल आई  हैं और अपना नया आशियाना तलाश रही है जरुरत एस विलुप्त होती चिड़िया को बचाने की जिस से आने वाली पीढ़ी भी इसे सिर्फ किताबो में न पढ़े।