टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के छात्रों का जोरदार आंदोलन शुरू

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मुंबई, मोदी सरकार के फैसले की वजह से पिछले चार दिनों से टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के छात्रों की ओर से जोरदार आंदोलन शुरू है। लेकिन अभी तक सरकार और टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज की आखे नहीं खुली है। गौरतलब है की 21 फरवरी से टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज मुंबई के छात्रों ने इस धरना आंदोलन की शुरू किया था । जो अब हैदराबाद, गुवाहाटी और तुलजापुर तक भी पहुंच गया है। आज इस आंदोलन का चौथा दिन है लेकिन अभी तक सरकार और टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज इस आंदोलन को गंभीर रूप से नहीं ले रही है।

पढ़ाई बीच में ही छोड़ने पर मजबूर
टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के छात्रों ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में कमी कर दी गई है। इसकी वजह से टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज में भी फीस की छूट खत्म कर दी है। ऐसे में फीस बढ़ने की वजह से कई ऐसे भी छात्र हैं, जो फीस नहीं भर पा रहे हैं और नतीजा ये है कि उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़ने पर मजबूर हो रहे है। छात्र पिछले चार दिनों से हड़ताल पर है। उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज का गेट बंद कर दिया है और वो कैंपस में ही धरना दे रहे हैं।

छात्रों पर आर्थिक संकट
टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज में पढ़नेवाले छात्रों में दलित और आदिवासी छात्रों के साथ ही अल्पसंख्यक छात्रों की भी अच्छी-खासी संख्या है। यहां पर पिछले कई सालों से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के उन छात्रों को फीस में छूट मिलती थी, जो पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए योग्य होते थे। ऐसे विद्यार्थियों को ट्यूशन फीस में छूट मिलती थी। वहीं इनसे मेस और हॉस्टल के पैसे नहीं लिए जाते थे। लेकिन अब सरकार के फैसले की वजह से दलित और आदिवासी छात्रों को प्रति साल 62 हजार रुपए देना पड़ रहा है। इसके चलते विद्यार्थियों आर्थिक समस्या से परेशान है।

पिछड़े वर्ग विद्यार्थी में आ रही है कमी
छात्रों का ये भी कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से मिलने वाली स्कॉलरशिप में भी कमी कर दी गई। एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अकेले महाराष्ट्र में भी छात्रों की संख्या 65 से घटकर 20 रह गई। 2017 तक जहां टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के कुल 97 छात्रों को स्कॉलरशिप मिलती थी, वहीं 2017 में इनकी संख्या घटकर 47 ही रह गई। इस से साफ पता चल रहा है की पिछड़े वर्ग विद्यार्थी को सरकार पढ़ाना नहीं चाहती है।

एससी और एसटी के छात्रों से खिलवाड़
बता दे की जब 2016 का सत्र शुरू हो रहा था, तो यूनिवर्सिटी की ओर से प्रॉस्पेक्टस में लिखा गया था कि बढ़ी हुई फीस वापस कर दी जाएगी। एक साल बीता फीस वापस नहीं हुई। जब 2016 के छात्र दूसरे सत्र में यानी 2017 में आए, तो एक बार फिर से फैसला बदल गया। प्रशासन की ओर से एससी और एसटी के छात्रों से भी कहा गया कि उन्हें मेस और हॉस्टल का बिल चुकाना पड़ेगा छात्रों ने इसका विरोध किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ है। इस के खिलाफ अब छात्र सङ्क पर उत्तर गए है।

मुंबई से हुई आंदोलन की शुरूवात
टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के छात्रों और वहां के स्टूडेंट यूनियन ने इसके लिए यूनिवर्सिटी के अलावा मानव संसाधन मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय में भी याचिकाएं डाल रखी हैं। जब मंत्रालय में भी सुनवाई नहीं हुई, तो छात्रों का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने 21 फरवरी से हड़ताल की घोषणा कर दी. ये हड़ताल मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज से शुरू हुई, जो हैदराबाद, गुवाहाटी और तुलजापुर तक भी पहुंच गई है।

यूजीसी ने अनुदान किया कम
छात्रों ने बताया की हमने अपनी मांगो को लेकर टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के अधिकारीयों से बात करने की कोशिश की तो। उस पर उन्होंने जवाब दिया है की यूजीसी ने इस वर्ष से अनुदान कम कर दिया है। पहले साल के 20 करोड़ रुपए यूजीसी दे रही थी। अब सिर्फ 6 करोड़ रुपए ही दे रही है। अनुदान कम मिलने से हमने इस वर्ष से मेस और हॉस्टल की छुट्ट को रद्द कर दिया है।

स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष अर्चना सुरेन ने बताया की 2016-18 बैच और 2017-19 बैच के एससी, एसटी और ओबीसी के साथ ही अल्पसंख्यक छात्रों की बढ़ी हुई फीस वापस नहीं ली जाती और मेस और हॉस्टल की फीस माफ नहीं की जाती तब तक ये हड़ताल जारी रहेगी। -अर्चना सुरेन अध्यक्ष स्टूडेंट यूनियन

विकास तातड,कार्यकारी स्टूडेंट यूनियन सरकार के फैसले की वजह से टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज में भी फीस की छूट खत्म कर दी है। ऐसे में फीस बढ़ने की वजह से कई ऐसे भी छात्र हैं, जो फीस नहीं भर पा रहे हैं और नतीजा ये है कि उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़ने पर मजबूर हो रहे है। इस पर जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए |