उत्तराखंड में प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा के कई गुरुकुल आश्रम रहे है लेकिन आज तक सरकारी मदद न मिलने के कारण इनमे पड़ रहे हजारों छात्रों का भविष्य अन्धकार में है। लगातार अपनी उपेक्षा के चलते और संस्कृत भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी, ऋषिकेश ने एक भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया जिसमे बड़ी संख्या में छात्रों ने हिस्सा लिया।
प्राचीन काल से ही उत्तराखण्ड देव भूमि के रूप में अपनी विशेष पहचान रखती है, यहाँ कई ऋषि-मुनियों के गुरुकुल और आश्रम होने के चलते देववाणी संस्कृति का विशेष अध्यन्न केंद्र मन जाता था। लेकिन वर्तमान समाज में पश्चिमी सभ्यता का तेजी से प्रसार होने के चलते संस्कृत भाषा पिछड़ती चली गयी और वर्तमान में गुरुकुल और आश्रमों की शिक्षा पद्धति बदहाल और संकट में है।
कई बार सरकार ने संस्कृत भाषा के उथान के लिए वादे तो किये लेकिन जमीनी स्तर पर कोई काम न होने के चलते आज स्थिति खराब होती जा रही है, वहीँ संस्कृत भाषा में अपना करियर तलाश रहे युवायों को अब भविष्य की चिंता सताने लगी है। उनका कहना है कि सरकार शिक्षा में संस्कृत भाषा को भी उतना सम्मान दे और इस विषय में अध्यन कर रहे छात्रों के लिए रोजगार के अवसर भी प्रदान करे। जबकि हक़ीकत ये है कि यहाँ चल रहे कई संस्कृत महाविद्यालयों में अध्यापकों की कमी है और ये विद्यालय निजी संस्था के सहयोग से चल रहे हैं, जिनमे सरकारी सहायता न मिल पाने के कारण इनकी बंद होने की नोबत आ गई है।
सरकार भाषा संस्थान और संस्कृत अकादमी खोल कर, प्रतिक रूप में संस्कृत को बढ़ावा देने का काम तो कर रही है, लेकिन ये ऊँठ के मुँह में जीरा साबित हो रहा है। जमीनी हक़ीक़त में कई विद्यालय और माहविद्यालय दान पूण्य के पैसों से चल रहे है जिससे वहां पड़ने वाले छोत्रों को शिक्षा में ज्यादा सुविधा नहीं मिल पा रहीं है। अगर यही हालात रही तो आने वाले वक़्त में संस्कृत भाषा विलुप्ति के कगार में पहुच जाएगी।