उत्तराखंड में हाइवे पर दोबारा गुलज़ार होंगे शराब के ठेके

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    उत्तराखंड के नौ पहाड़ी जिलों में हाईवे पर 500 और 220 मीटर दूरी की बाध्यता सर्वोच्च न्यायालय ने खत्म कर दी है।सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में हाईवे पर शराब के ठेके और बार खुल सकेंगे जिस के साथ साथ देहरादून और नैनीताल की सात तहसीलों को भी इस छूट का लाभ दिया गया है। राजमार्गों के 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानों पर प्रतिबंध पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से कुमाऊं के पर्वतीय जिलों में शराब विरोधी आंदोलन को झटका लगा है। मैदानी क्षेत्रों में इस आदेश के बाद भी सरकार को खास फायदा शायद ही मिल पाए।आपको बतादें कि हरिद्वार और उधमसिंह नगर में अभी भी शराब की दुकानों पर बैन है।

    शुक्रवार को इसके आदेश मिलने के बाद आबकारी विभाग ने इस पर काम शुरू कर दिया है।उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों की परिस्थितियों को देखते हुए यहां इसी आधार पर हाईवे में शराब की दुकानें, ठेके और बार खोलने में दूरी की छूट दी जाए।इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शुक्रवार को सरकार के पक्ष में फैसला दिया। जिसमें कहा गया कि उत्तराखंड के नौ पहाड़ी जिलों में दुकानें या बार खोलने के लिए हाईवे से 500 मीटर और 220 मीटर दूरी की बाध्यता नहीं रहेगी।

    कोर्ट के इस फैसले से चमोली, चंपावत, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर और रुद्रप्रयाग में अब ठेके खोलने के लिए हाईवे से 500 मीटर या 220 मीटर की दूरी नहीं रखनी पड़ेगी। इससे विभाग को राजस्व का भी फायदा होगा।यही वह क्षेत्र भी हैं जहां सरकार को आबकार से अधिक राजस्व भी मिलता है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सहारा पाकर मैदानी ऊधमसिंह नगर, नैनीताल जिले की कालाढ़ूंगी, लालकुआं, हल्द्वानी, रामनगर तहसील में शराब विरोधी आंदोलन और तेज हो सकता है। इन क्षेत्रों में शराब विरोधी आंदोलन में आपसी विवाद भी शामिल है।

    दूसरी ओर, कुमाऊं के पर्वतीय जिले ही हैं जहां से शराब विरोध की आवाज उठती रही है। यहां अधिकतर राजमार्ग आवासीय क्षेत्र और कस्बों के बीच से होकर गुजरते हैं। एक तरह से राजमार्गों से शराब की दुकानों को शिफ्ट कराने का मामला आवासीय क्षेत्रों से दुकानों और ठकों को हटाने का भी है। पर्वतीय क्षेत्रों में राजमार्ग के 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानों केसंचालन की अनुमति मिलना आंदोलनकारियों को कतई रास नहीं आएगा। वहीं, सरकार को भी आबकारी से बहुत अधिक फायदा होने की उम्मीद कम ही है।

    राष्ट्रीय और राज्य मार्ग के रूप में अधिसूचित सड़कों के 500 मीटर के दायरे से शराब की दुकानों को बाहर करने के आदेश के बाद कुमाऊं आंदोलन की आंच में तप गया है। शुरू में राजमार्गों से इन दुकानों को शिफ्ट कर आबादी वाले क्षेत्रों में स्थापित करने का विरोध हुआ। धीरे-धीरे इस विरोध ने अवैध शराब के संचालन, शराब माफिया के खिलाफ भी जोर पकड़ा। अब इस आंदोलन की आंच में शराब का पूरा कारोबार भी झुलस रहा है। कुमाऊं वैसे भी शराब विरोधी आंदोलन के लिए उर्वर साबित होता आया है। द्वाराहाट में ही कई महिला मंगल दल एक मंच पर आकर शराब व्यवसाय का विरोध छेड़े हुए हैं। इस शराब विरोधी आंदोलन में हर जगह महिलाएं ही अग्रिम मोर्चे पर डटी हैं। राजस्व की चिंता में दुबली हो रही प्रदेश सरकार ने पर्वतीय प्रदेश के नाम पर सर्वोच्च न्यायालय से राहत मांगी थी। अब सर्वोच्च न्यायालय से प्रदेश सरकार को तो कुछ हद तक राहत मिल गई है। कारण यह भी है कि मैदानी जिलों की तहसीलों के लिए न्यायालय ने कोई राहत नहीं दी है।