‘स्पिरिट ऑफ माउंटेन वुमेन’ को निराले अंदाज़ में दर्शाती है ”सुरीली”

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”वो कहते हैं ना अपनी शक्तियों पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता”, कुछ ऐसा ही हुआ है दून की हिमानी थापा के साथ। 30 साल की हिमानी देहरादून की रहने वाली है, और हाल में ही उन्होंने अपनी पहली गुड़िया यानि ‘सुरीली डॉल’ को लॉंच किया है। यूं तो लड़कियों के बचपन की साथी गुड़ियां होती है लेकिन यह सुरीली कुछ खास है।

सुरीली नाम की इस गुड़िया में उत्तराखंड की प्राकृतिक फसल और घास भीमल से बनीं हुई है। ये वो घास है जो गांव में लोग जलाकर फेंक देते हैं, सुरीली उसी घास से तैयार की गई है। औषधीय वृक्षों में भीमल एक ऐसा नाम है जिसके पेड़ काफी बड़ी मात्रा में पहाड़ों पर खेतों के किनारे पर पाए जाते है.। इसे हम भीकू, भीमू, और भियुल नाम से भी जानते है, इस पेड़ का कोई ऐसा भाग नहीं है जो काम नहीं आता हो।

sureeli the pahadi doll

हिमानी ने न्यूज़पोस्ट से बात करते हुए बताया कि, ”मैं हमेशा से कुछ अपना ओरिजिनल करना चाहती थी और तभी मैंने उत्तराखंड के नेचुरल फैब्रिक पर काम करना शुरु किया। कुछ प्रोजेक्ट के दौरान बिच्छु घास के फैब्रिक से गारमेंट भी बनाया, लेकिन कुछ अलग और अपना करने की ललक मुझमें तब भी थी। दून के बाहर बसे गांव कोठला से मेरे सफर की शुरुआत हुई।यहां की महिलाओं से मिलकर मुझे एहसास हुआ कि हमारे पहाड़ कि महिलाओं में प्रतिभा की कमी नहीं है और अगर यह चाहे तो हंसते-हंसते पहाड़ भी हिला सकती हैं। मैंने भीमल घास से डॉल यानि की गुड़िया बनाने के बारे में कोठला की महिलाओं से बात की और कुछ महिलाएं मेरे साथ जुड़ गई।”

हिमानी देहरादून की रहने वाली हैं और उन्होंने टेक्सटाईल और क्लोथिंग में पंतनगर यूनिर्वसिटी से ग्रेजुएशन और फिर एनआईडी (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइनिंग) से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। बांस और फाईबर डेवलेपमेंट में डिप्लोमा करने के बाद हिमानी ने कुछ सरकारी प्रोजेक्ट पर काम किया है, साथ ही कुछ प्रोजेक्ट में कन्सल्टेंट की तरह भी काम किया। इन प्रोजेक्ट में काम करने के दौरान हिमानी ने बिच्छु घास के फैब्रिक से कपड़े भी बनाए और साथ ही लगभग पांच साल मुंबई में भी काम किया है। अपने होमटाउन से बाहर काम करने के बाद हिमानी ने अपने राज्य उत्तराखंड में रहकर कुछ करने का सोचा और तब उनकी यह ‘सुरीली’  यात्रा शुरु हुई।

आपको बतादें कि भीमल उत्तराखंड में बड़ी मात्रा में होने वाला पेड़ है जिसके पत्तों और शाखाओं से गांव के लोग रस्सी बनाते हैं।किसी ने सोचा भी नहीं था कि इसके रेशों से खुबसूरत डॉल ‘सुरीली’ तैयार होगी।

sureeli

हिमानी कहती हैं कि, ”इसके माध्यम से मैं पहाड़ी औरतों का उत्साह बढ़ाना चाहती हूं, जिसे देखो पहाड़ का दर्द दिखाने में व्यस्त हैं लेकिन मुझे पहाड़ी औरतों के चेहरों की मुस्कान और उत्साह दिखाना पसंद हैं। ‘सुरीली’ नेचुरल फाईबर यानि भीमल से तैयार हुई है जो स्पीरिट ऑफ माउंटेन वुमन को दर्शाती है।”

‘सुरीली’ के माध्यम से दून के दूर-दराज गावों में बसी महिलाओं को रोज़गार मिल रहा है और अपनी कला को दिखाने का एक बेहतर माध्यम मिल रहा है। हिमानी कहती हैं कि राज्य से हो रहा पलायान वाकई चिंता का विषय है और हिमानी अपने प्रोजेक्ट के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रही हैं। हिमानी एक टेक्सटाईल डिजाइनर और फिलहाल वह केदारनाथ में भी एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं जिसमें वह स्थानीय महिलाओं को नेचुरल फाईबर से अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने के गुण सिखा रही हैं।

हिमानी कहती हैं कि, “सुरीली डॉल हमारा पहला प्रोडक्ट है,इसके बाद हम अलग-अलग प्रोडक्ट लेकर आऐंगे जैसे कि फ्रिज मैगनेट,कार हैंगिंग,बैग हैंगिंग और सुवोनिर ऑफ उत्तराखंड के ऊपर भी काम चल रहा है। सुरीली पर पिछले साल अगस्त से काम शुरु हो गया था और अब सुरीली बनकर तैयार हो गई है जिसकी गुणवत्ता बेहतरीन है।”

अगर आप भी इस खास डॉल को अपने बच्चों या घर के लिये लेना चाहते हैं तो सुरीली डॉल आपको सोहम आर्ट और म्यूजियम मसूरी में मिलेगी।