पलायन आयोग प्रदेश के 12 जिलों में करेगा पलायन पर सर्वे

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राज्य में चिंता का विषय बने हुए पलायन को रोकने के लिए पहले उसकी स्थिति और कारणों को जानने के लिए पलायन आयोग राज्य के 12 जिलों में ग्राम स्तर पर सर्वे करा रहा है। इसकी रिपोर्ट 15 अप्रैल तक सरकार को भेज दी जाएगी। इस सर्वे के बाद प्रदेश में पलायन रोकने के उपाय किए जाएंगे।
राज्य पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी ने शुक्रवार को आईटी पार्क स्थित एक रेस्टारेंट में ये जानकारी दी। उन्होंने बताया कि देहरादून को छोड़कर प्रदेश के बाकी 12 जिलों में आयोग एक बृहद सर्वे करा रहा है। इसमें ये पता लगाया जाएगा कि किस जिले में कितना पलायन हुआ है। उसके कारण क्या क्या हैं। पलायन के बाद लोग वहां से सबसे ज्यादा कहां जा रहे हैं इसका भी पता लगाया जाएगा। ये पूरी रिपोर्ट तैयार होने के बाद 15 अप्रैल तक सरकार को भेजी जाएगी। इसके बाद आयोग पलायन को कैसे रोका जाए इसके उपाय करेगा। डॉ. नेगी के अनुसार राज्य में पर्यटन, वन और कृषि के जरिए पलायन रोका जा सकता है। इसके अलावा प्रदेश में नए उद्योग लगाकर पलायन को रोका जाएगा।
वर्ल्ड बैंक के साथ मिलकर चलाए जाएंगे प्रोजेक्ट
डॉ. नेगी के अनुसार पलायन रोकने के लिए प्रदेश में वर्ल्ड बैंक के साथ मिलकर कुछ प्रोजेक्ट चलाए जाने हैं। जिन्हें लेकर वर्ल्ड बैंक से आर्थिक मदद ली जाएगी। उन्होंने बताया कि प्रदेश में ग्रीन रोड (कंडी मार्ग) के अलावा ईको टूरिज्म और जड़ी बूटी की खेती को विकसित कर पलायन रोकने की योजना है। इसके लिए पतंजलि आयुर्वेद से भी आयोग वार्ता करेगा। ताकि उन्हें जो जड़ी बूटी चाहिए यहीं पर उसका उत्पादन किया जा सके। प्रदेश कहां किस तरह की जड़ी बूटी की पैदावार हो सकती है इसका भी एक सर्वे डब्ल्यूआईआई की मदद से कराया जाएगा। अभी कुछ जगहों पर सर्वे कराया गया है, जिसे लेकर जल्द आयोग डब्ल्यूआईआई से रिपोर्ट लेगा।
पौड़ी और अल्मोड़ा में पलायन चिंताजनक
प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार पौड़ी और अल्मोड़ा में पलायन की स्थिति सबसे चिंताजनक है। इन दोनों जिलों में जनसंख्या 2011 के मुकाबले घटी है। जबकि टिहरी में मामूली बढ़त है। इसी तरह प्रदेश के अन्य पहाड़ी जिलों में जनसंख्या के आंकड़े पलायन के लिहाज से चिंताजनक हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे बड़ी समस्या
डॉ. नेगी के अनुसार प्रदेश में पलायन का सबसे बड़ा कारण पहाड़ों पर शिक्षा और स्वास्थ्य की बदहाली है। वे मानते हैं कि राजधानी गैरसैंण करने के बजाए इसके लिए खर्च किया जाना वाला करीब 500 करोड़ का बजट अगर पहाड़ों पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में लगाया जाए तो पहाड़ का विकास हो सकता है।