विदेशों में लगेगी चम्पावत की चाय की चुस्की

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    जिले में उत्पादित चाय अब विदेशी प्यालों की शान बढ़ा रही है। 18 ग्राम पंचायतों की 202 हेक्टेयर जमीन पर इसकी फसल लहलहा रही है। पिछले दो सालों में यहां 80 हजार किलो चाय पत्ती का उत्पादन हुआ है। इससे ग्रामीणों की आय बढ़ने के साथ ही रोजाना करीब चार सौ श्रमिकों को भी रोजगार मिल रहा है।

    दो सौ साल पहले अंग्रेजों ने चम्पावत क्षेत्र में चाय की खेती शुरू की थी। 1995-96 में टी-बोर्ड के गठन के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में चाय विकास योजना को लागू करने के प्रयास शुरू हुए। जनपद की सिलंगटाक ग्राम पंचायत में चाय बागान की शुरुआत की गई। 2004 में इस दिशा में काम और आगे बढ़ा।

    ग्राम पंचायतों में काश्तकारों की भूमि पर चाय बागान लगाने के काम में तेजी आई। 2007 में छीड़ापानी में नर्सरी बनने के साथ ही इसके रोपण में तेजी आ गई। वर्तमान में सिलंगटाक, छीड़ापानी, मुड़ियानी, मौराड़ी, मझेड़ा, चौकी, च्यूरा खर्क, भगाना भंडारी, नरसिंह डांडा, कालूखाण, गोसनी, फुंगर, लमाई, चौड़ा राजपुर, खेतीगाड़, बलाई आदि ग्राम पंचायतों की 202 हेक्टेयर भूमि पर चाय के बागान हैं।

    टी-बोर्ड के स्थानीय प्रबंधक डैसमेंड बताते हैं कि यहां चाय की नर्सरी तैयार होने से चार सौ से अधिक लोगों को प्रतिदिन रोजगार मिल रहा है। ग्राम पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत भी इसकी खेती को प्रोत्साहित करने से अब कई किसान सामने आने लगे हैं। टी बोर्ड द्वारा चाय के पौधों के रोपण के साथ ही तीन साल तक लगातार इनकी देखभाल की जाती है। सात साल बाद भू-स्वामी को पूरा स्वामित्व दे दिया जाता है। पिछले दो वर्षों में यहां 80 हजार किलो एक्सपोर्ट क्वालिटी की जैविक चाय का उत्पादन हुआ। इस वर्ष साल 50 हजार किलो उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

    उत्तराखंड टी-बोर्ड इस चाय पत्ती को फिलहाल 1200/- रुपये प्रति किलो की दर से बेच रहा है। इस जैविक चाय की मार्केटिंग कोलकाता में होती है। पैरामाउंट मार्केटिंग कंपनी इस चाय को जर्मनी, इंग्लैंड सहित कई यूरोपीय देशों को निर्यात करती है। टी बोर्ड के निदेशक डॉ. बीएस नेगी का कहना है कि चाय की खेती को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसका विस्तार हो रहा है। मनरेगा के जरिए भी इसके बागान तैयार करने को प्रोत्साहित किया जा रहा है।