लापरवाही का नतीजा भुगत रहे हैं 44 महाविद्यालयों के शिक्षक

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देहरादून। प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा राजकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों का वेतन दिलाने की घोषणा के बावजूद नौकरशाही द्वारा इसमें पहल नहीं की जा रही है। जिसके कारण स्थिति बद से बदतर हो रही है, हालांकि उत्तराखंड के उच्च शिक्षा को अब पटरी पर लाने का काम हो रहा है अन्यथा उत्तराखंड के कुमाऊं के चार महाविद्यालयों को छोड़कर सभी राजकीय महाविद्यालय भगवान भरोसे चल रहे थे। इसका कारण उनका आर्थिक प्रबंधन एक साथ न करना था।

राजकीय महाविद्यालय रूद्रपुर, काशीपुर, हल्द्वानी को छोड़कर शेष महाविद्यालयों का आर्थिक मद संतुलित नहीं किया गया। जिसके कारण चार महाविद्यालयों को छोड़कर शेष महाविद्यालयों की स्थिति दयनीय है। उत्तराखंड के 44 महाविद्यालय के शिक्षकों को पिछले चार- पांच माह से वेतन नहीं मिला है। दूसरी ओर राजकीय महाविद्यालय हल्द्वानी, रूद्रपुर, काशीपुर तथा रामनगर की ओर से करोड़ों की राशि वापस की गई। कुमाऊं के इन चार महाविद्यालयों को आर्थिक संसाधनों में प्रमुखता दिया जाना तथा शेष को वेतन मद के लिए भी तड़पाना समस्या का कारण बना हुआ है।
राजधानी देहरादून के स्नाकोत्तर महाविद्यालय रायपुर के शिक्षकों को पांच माह से वेतन नहीं मिला है, जबकि राजकीय महाविद्यालय चुड़ियाला के शिक्षकों को छह माह से वेतन नहीं मिला है। इसी तरह राजकीय महाविद्यालय मरगूबपुर तथा राजकीय महाविद्यालय नरेन्द्र नगर के शिक्षकों को पिछले चार माह से वेतन नहीं मिला है। यही स्थिति राजकीय महाविद्यालय डोईवाला की भी है, जो मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र भी है के शिक्षकों को चार माह से वेतन नहीं मिला है। ऐसा नहीं है कि उच्च शिक्षामंत्री और मुख्यमंत्री की ओर से पहल नहीं हुई। लगभग डेढ़ माह पहले उच्च शिक्षामंत्री इस संबंध में विशेष पहल की थी और विशेष आदेश किए थे,लेकिन यह विशेष पहल भी अब तक रंग नहीं लाई है। इसके ठीक विपरीत राजकीय महाविद्यालय हल्द्वानी, रूद्रपुर, काशीपुर और रामनगर के महाविद्यालय प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए वापस करते हैं, जो उन्हें ओवर बजट के रूप में मिल जाता है।
इसी जनवरी माह में राजकीय महाविद्यालय रूद्रपुर द्वारा लगभग चार करोड़ से अधिक का बजट वापस किया गया। महाविद्यालय के बजट का प्रबंधन उत्तर प्रदेश के कार्यकाल में सभी के लिए एक साथ किया जाता था, लेकिन अब ऐसा प्रबंधन नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण कुछ महाविद्यालयों को आवश्यकता से चार से पांच गुनी की राशि अधिक दी जा रही है। शेष के लिए प्रबंधन भी नहीं है। यह स्थिति उत्तराखंड बनने के बाद बिगड़ी है। इसका कारण तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्रियों की विशेष पहल रही है,जिसके कारण उनके क्षेत्रों के महाविद्यालयों को अधिक महत्व दिया जाता था, बजट में पारदर्शिता न होने के कारण अन्य महाविद्यालय इस अव्यवस्था का शिकार हो रहे हैं। पिछले चार- पांच उच्चशिक्षा निदेशकों की लापरवाही का नतीजा विद्यालयों के शिक्षकों तथा कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।
इस संदर्भ में उच्चशिक्षा निदेशक डॉ. सविता मोहन से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि उन्होंने अभी चार्ज संभाला है, उनके संज्ञान में यह मामला आ गया है। उन्होंने कहा कि हर संभव प्रयास कर इसी सप्ताह वेतन के लिए पूरा प्रबंध कर देंगी। डॉ. सविता मोहन का कहना है कि इस संदर्भ में उन्होंने वित्त विभाग से लगातार सम्पर्क कर पूरी व्यवस्था बना दी है,लेकिन अब भी दो से तीन दिन लग जाएंगे। उन्होंने अस्वस्थ किया है कि इस व्यवस्था के बाद वेतन की कोई अव्यवस्था नहीं होगी।