पाकिस्तान भेजे जाने के डर में क्यों जी रहा है एक हिंदुस्तानी?

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(उधमसिंह नगर), भारत और पाकिस्तान के विभाजन का दर्द लाखों लोगों ने सहा, और विभाजन के दर्द की कड़वाहट आज भी लोगों के जहन में है। इस विभाजन से देश की सीमाएं बनी तो हर किसी ने इसकी मार झेली सबका काफी कुछ लुट गया। एेसे ही विभाजन की मार झेल रहे 85 साल के बुजुर्द नन्द किशोर उर्फ हसमत अली की दास्तां सुनकर आप की आंखे भर आयेंगी। नंद किशोर अपने ही देश में अपनी पहचान तलाश रहे हैं, और हर दिन इस दर्द के साथ जीते है की कहीं उन्हे पाकिस्तान ना भेज दिया जाए। मगर उम्र के अंतिम पड़ाव पर इनकी यही ख्वाहीश है कि अंतिम सांसे लूं तो अपने जन्म स्थान में। देश के विभाजन की मार झेल रहे नन्द किशोर उर्फ हसमत अली की क्या है पुरी दास्तां आपको बताते हैं।

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सरहदों पर लकीर खींच दी गयी और भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, इस बंटवारे में देश के दो टुकडे तो हुए मगर मां से एक बेटा भी अलग हुआ, जो महज आठ साल का था। विभाजन के बाद पुरा परिवार भारत में रह गया और आठ साल का नन्द किशोर पाकिस्तान में ही रह गया, जो एक जमींदार के घर पर काम करते हुए बड़ा हुआ। सत्रह साल की उम्र में अपने वतन लौटने की हसरत हुई तो नन्द किशोर तब तक हसमत अली बन चुके थे, पाकिस्तान से हसमत अली के नाम के पास्पोर्ट और वीजा लेक र वो भारत पहुंचे और अपने परिवार से मिले। अपने वतन पहुंच कर नन्द किशोर ने अपना दाम्पत्य जीवन शुरु किया और आज उनके चार बेटे है जिन सबकी शादी भी हो गयी है। नाती पोतों से भरे परिवार में नन्द किशोर अपना जीवन यापन कर रहे हैं, नन्द किशोर उधमसिंह नगर के नारायण पुर गांव में कई सालों से रहते हैं, मगर उन्हे अपने ही देश में रहने के लिए हर साल अनुमति लेनी पड़ती है, हर दिन उनको यही गम सताता है कि कहीं उन्हे पाकिस्तान ना भेज दिया जाए।

17 साल की उम्र में नन्द किशोर अपने देश लौटे, वतन लौटने के बाद उनकी पहचान भारतीय नहीं बल्कि पाकिस्तानी के रुप मे बन गयी, जिनको अपने ही देश में रहने के लिए हर साल पास्पोर्ट की अवधि बढानी पडती थी। लेकिन विदेश मंत्रालय हर बार उनको पाकिस्तान भेजने के लिए पैरवी करता था, एक बार तो उनको पाकिस्तान भेज भी दिया गया था मगर अटारी बोर्डर से ही उन्हे वापस घर भेज दिया गया था। उनके परिवार के लोगों का दर्द इसी बात से झलकता है कि उनके पिता या दादा एक पाकिस्तानी बन कर ही मर जाएंगे, जो आज भी पुलिस के रिकोर्ड में पाकिस्तानी के रुप में दर्ज है।

वर्ष 2008 में नन्द किशोर के मामले में कोई सुनवायी नहीं हुई और उनको पाकिस्तान भेजने की तैयारी कर दी गयी मगर उनकी शारीरिक अवस्था और उम्र को देखते हुए कोई कार्यवाही नहीं की गयी, जबकि उनका हर साल रिकोर्ड मिनीस्ट्री को भेजा जाता है जो पुरी तरह से सही है।
अपने ही देश मे परदेशी बनकर 65 सालों से एक 85 साल का बुजुर्ग अपनी पहचान साबित कर थक चुका है। देश का विभाजन क्या हुआ कि नंद किशोर की पहचान ही बदल गयी। हर दिन यही गम सताता है कि कही उनको पाकिस्तान ने भेज दिया जाए। वही उनका परिवार भी यही चाहता है उनके पिता एक भारतीय बनकर ही इसी देशमे अपनी अंतिम सांसें ले। मगर सरकारी फाइलों अौर पुलिस रिकॉर्ड हमेशा ही नंद किशोर को पाकिस्तानी होने का एहसास कराते हैं।