कांग्रेस के बुजुर्ग नेता नारायण दत्त तिवारी के भाजपा का दामन थामते ही कांग्रेस ही नहीं उत्तराखंड की समूची राजनीति में हलचल पैदा हो गई है। गौरतलब है कि नब्बे साल की उम्र पार कर चुके श्री तिवारी उत्तराखंड और उससे पहले संयुक्त उत्तर प्रदेष के भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा वे केंद्रीय वित्त और उद्योग मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद भी कांग्रेस की सरकार में संभाल चुके हैं। उनकी कांग्रेस से नाराजगी की वजह उनके पुत्र रोहित षेखर को अगले महीने के विधान सभा चुनाव में पार्टी टिकट देने में राज्य और केंद्रीय नेतृत्व की आनाकानी बताई जा रही है। यह बात दीगर है कि खुद को श्री तिवारी का पुत्र सिद्ध करने के लिए रोहित को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। उन्हें अपनाने से श्री तिवारी के इंकार पर अदालत द्वारा उनके खून से मेल कराई। रोहित के खून की डीएनए जांच मिल जाने पर उन्हें मजबूरन रोहित की मां उज्जवला शर्मा से शादी करके उन्हें अपनाना पड़ा।
कांग्रेस हाईकमान और प्रादेषिक नेतृत्व की मुष्किल यह है कि आंध्र प्रदेष के राज्यपाल पद से श्री तिवारी को राजभवन में उनके अष्लील वीडियो के वायरल होने पर नैतिकता के तकाजे पर हटाया गया था। साथ ही उन्हें अपना पिता सिद्ध करने के दौर में रोहित के आरोपों से भी उनकी तथा कांग्रेस की खासी मिट्टी पलीद हो चुकी है। ऐसे में रोहित को टिकट देकर पार्टी शायद श्री तिवारी और अपनी बदनामी के अध्यायों का रायता चुनाव के दौरान फिर से फैलने देने से बच रही है। हालांकि तथ्य यह भी है कि संयुक्त उत्तर प्रदेष और उत्तराखंड के लिए श्री तिवारी विकास पुरूश सिद्ध हुए हैं। दिल्ली की सीमा पर बसी मशहूर नोएडा औद्योगिक नगरी की नींव उन्हीं के मुख्यमंत्री काल में रखी गई थी। इसी तरह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कमान संभालते ही उन्होंने इस पिछड़े पहाड़ी राज्य में सिडकुल के नाम से औद्योगिक क्षेत्रों की जो नींव रखी उसने आज इसे अग्रणी राज्य बना दिया है। सिडकुल इतने सफल रहे कि उनकी बदौलत राज्य की आबादी और आमदनी भी पिछले दस साल में करीब दुगुनी हो गई है। श्री तिवारी अब भले ही सक्रिय राजनीति में नहीं है, मगर उनके बागी हो जाने पर उनकी भावनात्मक अपील से निपटना कांग्रेस के लिए राज्य विधानसभा के इस सबसे कठिन चुनाव में टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
राजनीति वास्तव में अनिशिचताओं का खेल है। दिलचस्प है कि जहाँ एक तरफ़ प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी में नेताओं पर 75 साल की उम्र सीमा लगा कर कई नेताओं को राजनीति से रिटायर कर दिया है वहीं 91 साल की उम्र में पंडित नारायण दत्त तिवारी को पार्टी की सदस्यता दिलाई जा रही है। पार्टी में पहले ही उम्र के चलते लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को हाशिये पर डाल दिया गया है और तो और प्रधानमंत्री किसी भी राजनीतिक पद पर उम्मीदवार चुनने के लिये उम्र को एक बड़ा फ़ैक्टर मानते हैं। लेकिन नारायण दत्त तिवारी को पार्टी में लेते वक़्त इस सिद्धांत को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।