”नाइट वाॅक टू मसूरी” में नहीं रही वो बात

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लगभग 160 देहरादून निवासी जब अपने घरों से निकलकर देहरादून से मसूरी तक की पैदल यात्रा में भाग लेने के लिए निकले तो शायद उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उन्हें यह सब देखने को मिलेगा।जी हां, रात को 12 बजे यह सोच के निकले थे कि इस वाॅक को अपने जीवन का एक अनुभव बनाना चाहते थे, लेकिन जो देखने को मिला वह खुशी से बहद दूर था।

मसूरी की सड़के रात को 12 बजे के बाद भी गाडियों से खचाखच भरी हुई थी और इतना ही नहीं गाड़ियों में तेज आवाज़ में संगीत के साथ गाड़ी में बैठे लोग सड़क पर यहां-वहां कचरा भी फेंक रहे थे।हम बात कर रहे हैं ग्रुप ”बिन देयर दून दैट” की, जो दूनाइट्स को अलग-अलग अनुभव देने के लिए जाना जाता है। लेकिन दून टू मसूरी की यह वाॅक शायद लोगों के लिए उतनी अच्छी साबित नहीं हुई जितनी अच्छी सोचकर वह अपने घरों से निकले थे।

traffic in mussoorie

लोकेश ओहरी जो बीटीडीटी के फाउंडर हैं और इस वाॅक के लीडर हैं उनसे न्यूज़पोस्ट से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि, ‘हम काफी समय से लगभग हर रविवार इस वाॅक का आयोजन करते हैं।’ उन्होंने बताया कि इस वाॅक में वह दून से ऋषिकेश,मसूरी,सहस्त्रधारा और ऐसी जगह पर जाते हैं जहां आम लोगों ने यह सोच कर जाना छोड़ दिया है कि यह जगह दूर है या यहां पर भीड़-भाड़ ज्यादा होती है। उन्होंने कहा ,कि’ इस वाॅक के जरिए लोगों को यह बताना चाहते हैं कि यह जगह हमारी हैरिटेज है जिनको छोड़ना हमारी किसी समस्या का समाधान नहीं है।’ हालांकि पिछली वाॅक में जो हुआ उससे खुद लोकेश भी स्तब्ध थे कि रात के 12 बजे जब सड़के खाली होनी चाहिए थी ऐसे में पूरी सड़क बड़ी गाडियों और उनमें बजने वाले तेज आवाज के गानों से गूंज रही थी।

आपको बतादें कि देहरादून से मसूरी केवल 35-36 किलोमीटर की दूरी पर है और इस दौरान किसी तरह की कोइ चेकिंग नहीं होती।शनिवार और रविवार को तो मसूरी की तरफ जाने वाली सड़क गाड़ियों से भरी रहती हैं लेकिन अब आलम यह है कि हफ्ते के सारे दिन मसूरी लगभग गाड़ियों से भरी रहती है।

garbage in mussoorie

लोकेश ने बताया कि इस वाॅक के दौरान उन्होंने देखा कि कभी साफ सुथरी रहने वाली मसूरी कूड़े से भरी हुई है। गौरतलब है कि कहने के लिए मसूरी पहाड़ों की रानी है जिसकी खुबसूरती दुनियाभर में मशहूर है लेकिन इस भीड़-भाड़ ने मसूरी की उस खुबसूरती पर दाग लगा दिया है।

देहरादून से मसूरी तक होने वाले इस वाॅक से इतना तो पता चल गया है कि रात के 12 बजे भी मसूरी अपने पर्यटकों से भरी रहती है और पर्यटकों का दिल खोल के स्वागत करने वाली मसूरी को बदले में मिलता है सड़कों पर कचड़ा अौर ध्वनि प्रदूषण।

हालांकि लोकेश जैसे लोग अपनी विरासत को बचाने के लिए आए दिन नए प्रयास करते रहते हैं लेकिन यह प्रयास तब तक सफल नहीं होगा जबतक सब एकजुट होकर इनके बारे में नहीं सोचेंगे।