ऋषिकेश के प्रचीन भारत मंदिर की आठवी -नवी शताब्दी की परम्परा टेसू के फुल से रंग बना किया जाता भगवान भरत का अभिषेक। उत्तराखंड में त्योहारों को मानाने कि परम्परा भी अनूठी है। यहाँ प्रकृति ने जहां चारो ओर रंग बिखेरे है वही इन प्राकृतिक रंगो को समेट कर वापस प्रकृति को देने कि परम्परा भी यहाँ निभायी जाती है। होली के त्यौहार को मानाने के लिए ऋषिकेश के आंठवी शताब्दी के प्राचीन भरत मंदिर में एक परम्परा चली आ रही है। जिसमें भगवान विष्णु के स्वरुप भरत जी को जो ऋषिकेश नारायण के रूप में यहां वास करते है और ऋषिकेश के नगर देवता के रूप में माने जाते है होली के दिन नगरवासी प्रचीन समय से चली आ रही इस परम्परा को निभाते हुए ऋषिकेश नारायण भगवान भरत का टेसू के रंगो से होलिकाभिषेक करते हैं। बाज़ारो में नकली रंगो कि भरमार है लेकिन फाग के माह में प्रकृति ने अपने को कुछ ऐसे ढंग से सजाया है कि हर ओर फूलो की बयार सी बह रही है। आंठवी शताब्दी के प्राचीन भरत मंदिर में होली की एक परम्परा है जो प्रचीन समय से चली आ रही है। भरत मंदिर के मुख्य पुजारी धर्मानंद सेमवाल के अनुसार यहाँ मंदिर के प्रांगन में एक बड़ी कड़ाई में टेसू के फुल डाल कर रात भर पकाया जाता है और बड़ी होली को इस रंग से भगवान ऋषिकेश नारायण श्री भरत भगवान का अभिषेक किया जाता है
होली के दिन भगवान को टेसू के फूल से अभिषेक कर ऋषिकेश में होली की प्राचीन परम्परा निभाई जाती है। इसके बाद सभी लोग भगवान के इस रंग से प्रसाद के रूप में होली खेलते है। ये रंग शारीर और मन के साथ साथ आत्मा को भी शन्ति पहुंचते हैं और इस रंग से त्वचा में निखार आ जाता है। ये रंग प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है।