“वाटर, वाटर ऐव्री वेयर एंड नाॅट ए ड्राप टू ड्रिंक”, यह अंग्रेजी कविता उत्तराखंड के लिए बिल्कुल सटीक है। भारत की पांच प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल उत्तराखंड आज भी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है और मैदानी क्षेत्र फल ्फूल रहे हैं। कुछ साल पहले तक जो प्राकृतिक जल संसाधन फसल उगाने के लिए इस्तेमाल होते थे जिन खेत–खलिहानों के लिए यह राज्य मशहूर था आज वो सब सूख चुका हैं। गांव की औरतों को अपने घर से 3-4 किमी पैदल सफर कर पीने का पानी मिलता है जिसकी वजह से पहाड़ पर पलायन दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है।
सरकारी योजनाओं और दावों से अलग मसूरी से 15 किमी दूर क्यार्कुली गाँव में रह रहे 70 साल के गजय सिंह ने अपने सपनों को पूरा करने का साथ साथ जहां चाह वहां राह की एक उम्मदा मिसाल पेश की है। अपने अकेले के दम पर गजय दादाजी ने अपने आसपास के सभी क्षेत्रों को हरियाली से सराबोर कर दिया है। इसका कारण बना प्राकृतिक स्रोत से आने वाले पानी का सही उपयोग। गजय सिंह टीम न्यूजपोस्ट से बातचीत में बताते हैं कि, “पानी जीवन का सबसे महत्तवपूर्ण हिस्सा है,पानी है तो सब कुछ है,पानी सिर्फ इंसानों के लिए नहीं बल्कि पौधों के लिए भी जरुरी है। आज पानी ना होता तो मेरे पौधों का क्या होता, पानी खेतों के लिए, लाईट के लिए है अगर केवल सरकार इसपर ध्यान दे तो हमारे गढ़वाल और दूसरे क्षेत्रों के पलायन को रोका जा सकता है।”
लगभग 12 एकड़ में फैले इस छोटी सी इंडस्ट्री को करीब 10-12 लोग चला रहे हैं। मछली की टंकी, पौली हाउस, सेब, अाङू व अनार के पेड़, ट्रेडिशनल घराट जो 5 किलोवाट की बिजली पैदा करता है,इस फार्म में काम कर रहे हैं। गर्मीयों में अपने पिता से मिलने आई गजय की बेटी लक्ष्मी कहती हैं कि “हमे कभी नहीं लगता था कि पापा ऐसा कुछ कर पाऐंगे, हमें शुरुआत में यह सब बकवास लगता था, लेकिन धीरे-धीरे जब पापा ने यह सब किया तो हमें विश्वास नहीं हुआ कि एक पानी के स्रोत से सबकुछ कर सकते हैं।”
लेकिन यह सब एक दिन की मेहनत का नतीजा नही हैं, गजय सिंह को भी यह सब करने के लिए सिस्टम से लड़ाई लड़नी पड़ी। वह बताते है कि कागजों में फाइलें चलती हैं, हमारे चारों तरफ पानी है और हमारी मां बहनें दूर-दूर से बर्तनों में पानी ढोकर ला रहीं है, स्रोत होते हुए भी पानी की कमी है राज्य में, वजह केवल एक है: सारी स्कीम फाइलों में और सरकारी आॅफिस में पड़ी है।