100 दिनों से बर्फ और बारिश न होने के कारण उत्तराखंड के किसानों को हो सकता है भारी नुकसान

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ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर उत्तराखंड की कृषि, उद्यान और जल स्रोतों पर पड़ने लगा है। पिछले 100 दिन से उत्तराखंड के अधिकांश जिलों में बारिश नहीं हुई है। इनमें से सबसे ज्यादा खराब हालात में चमोली जनपद है। जानकारों की माने तो यदि ऐसा मौसम रहा तो कृषि उद्यान को 60 प्रतिशत से अधिक का नुकसान हो सकता है। चिंताजनक स्थिति यह है कि जल स्रोतों में 86 प्रतिशत जल प्रवाह कम हो गया है। जिसका सीधा प्रभाव आने वाले दिनों में सामने आ सकता है।


दिसम्बर जनवरी माह में आमतौर से पहाड़ों में बर्फवारी और बारिश होती है मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। मात्र कुछ तक हल्की बर्फवारी हुई वह भी नहीं टिकी अब हालत यह है कि यहां पर न सिर्फ जलवायु परिवर्तन के रूप में देखा जा रहा है वरन आम जन, कृषि, उद्यान, पीने के पानी से लेकर अन्य जलों पर संकट गहराने की नौबत आ गई है।

चमोली के अधिकांश जल स्रोतों में पानी कम होने लगा है। बर्फवारी न होने से नदियों को जल स्तर भी कम होने लगा है। रवी की फसलों में भी पीलापन आने लगा है और कहीं-कहीं तो फसल अभी से सुखने लगी है। गेंहू की फसल के लिए बुआई के 21 दिन के भीतर पानी की आवश्यकता होती जिसके न मिलने से नुकसान होने की संभावना है। यही हाल सिट्रस जाति के फलों के साथ भी है। जंगलों में जल स्रोत कम होने से वन्य प्राणियों को भी पानी नहीं मिल पा रहा है। जिससे वे नीचले क्षेत्रों में आने लगे है।

हिमालयी क्षेत्रों के वनों पर अध्ययन व अनुभव रखने वाले बदरीनाथ वन प्रभाग के डीएफओ एनएन पांडेय कहते है कि “बर्फ न गिरने से जल स्रोतों के जल प्रवाह में 86 प्रतिशत कमी आ गई है। 100 दिन से वर्षा नहीं हुई। भूमि की आर्दता में भी कमी आई है, जो वनाग्नि के लिए अच्छा नहीं है। जंगली जानवरों को भी पानी का संकट आ सकता है।” उधर, उद्यान अधिकारी नरेंद्र यादव ने कहा कि “गेहूं की फसल के लिए बुआई के बाद 21 दिनों के अंदर जो पानी चाहिए, वह नहीं मिल रहा है इससे रवी की फसल को 60 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। आने वाले दिनों में सिट्रस प्रजाति के फलों को और भी नुकसान हो सकता है।” 

पहाड़ी इलाको औऱ खासतौर पर औली में पर्याप्त बर्फबारी न होने के कारण औली विंटर गेम्स के होने पर भी सवालिया निशान लग गये हैं। बहरहाल जानकारों की माने तो ऐसे हालात चिंताजनक हैं और इन्हे लगातार हर साल पर्यावरण में होने वाले बदलावों से जोड़कर देखना चाहिये। जानकरा मानत हैं कि  अगर समय रहते इंसानो द्वारा पर्यावरण को किये जा रहे नुकसान पर काबू नही पाया गया तो आने वाले समय में इसके काफी बड़े और खतरनार परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।