गंगा स्वच्छता पर उत्तराखंड सरकार भी कर रही नई पहल

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    राज्य सरकार स्पर्श गंगा बोर्ड के मामले में फिर सचेत हो गई है। केन्द्र के अभियान के साथ-साथ अब गंगा सफाई में प्रदेश का भी महत्वपूर्ण कदम जुड़ जाएगा। इसीलिए इस बोर्ड का एक बार फिर नवीनीकरण किया जा सकता है। इस संदर्भ में एक प्रस्ताव बनाया गया है।

    संस्कृति निदेशालय जो सांस्कृतिक धरोहरों को प्रभावी बनाने का कार्य करता है इस मामले में सक्रिय हो गया है और उसने अपना प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। गंगा एनडीए सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है जिसे संचालित करना सरकार का महत्वपूर्ण संकल्प है। यूं तो गंगा, गऊ, गीता और भारतीय संस्कृति भाजपा के मूल आधार हैं। इसीलिए पार्टी इन मूल आधारों को सहेजकर चलती है। ऐसा नहीं है कि गंगा पर चिंता पहली बार हुई है लगातार सरकारें गंगा के नाम पर निरंतर कार्य करती रही हैं। इसके पीछे इस पवित्र नदी को जीवित रखने की परिकल्पना है।
    गुजरात में साबरमती का जिस ढंग से पुनरुद्धार किया था और आज साबरमती स्वच्छ और श्रेष्ठ नदियों में शामिल हो गई है। उसी प्रकार गंगा,यमुना जैसी पवित्र नदियों के बारे में भाजपा सरकारें लगातार चिंतन करती रहती हैं। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस सरकार ने कुछ काम नहीं किया है दिखावे के लिए ही सही उसने भी गंगा का मिशन जारी रखा लेकिन पूर्ववर्ती डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के नेतृत्व वाली सरकार ने गंगा के लिए स्पर्श गंगा अभियान चलाया था और इस अभियान के तहत अच्छा खासा जनजागरण किया था। यह बात अलग है कि उनके मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद इस संबंध में कोई विशेष कार्य नहीं हुआ। केन्द्रीय उमा भारती के नेतृत्व में गंगा से जुड़े सभी राज्यों में नमामि गंगे परियोजना पूरी तरह चल रही है। हिमालयी राज्य तथा गंगा मायका होने के कारण उत्तराखंड और गंगा एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं।
    आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में 1266 ग्लेशियल झील हैं जो 500 वर्ग मीटर से लेकर 2,44,742 वर्ग मीटर तक अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति का एहसास कराती हैं। इसका ज्वलंत प्रमाण केदारनाथ आपदा है। केदारनाथ मंदिर के ऊपर एक हिमनदी झील है जिसे गांधी झील का अब नाम दिया गया है महत्वपूर्ण स्थिति में है। इसी झील के टूटने के कारण 2013 में केदारनाथ में भयंकर आपदा आई और दसों हजार लोग मारे गए। इसका कारण वैज्ञानिक इसी झील का टूटना बताते हैं।
    वैज्ञानिक संस्थान अल्मोड़ा स्थित जीबी. पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के निदेशक पी.पी. ध्यानी का कहना है कि सरकारें राजनीतिक मुद्दे से हर चीज को देखती हैं लेकिन प्राकृतिक मुद्दों को जिस नजरिए से देखने की जरूरत है वह नहीं हो पा रहा है, जिनके कारण जलवायु परिवर्तन हो रहा है। राजनीतिक दलों ने सिंचाई और पनबिजली पैदा करने के लिए पानी उपलब्ध कराने की बात की है लेकिन नदियों को बारहमासी रखने के लिए उनके पास कोई योजना नहीं है। उन्हें लगता है कि नदियों को एक ही गति से हमेशा के लिए बहते रहेंगे। नदियों के बड़े जलाशयों में धाराएं फंस जाती हैं। सरकारों ने जल विद्युत परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दिया है।
    पिथौरागढ़ में करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना निर्माणाधीन है 6000 मेगावाट के पंचेश्वर बांध पर काम दो दशकों तक रोक दिया गया था। अब इस योजना को पुन: प्रारंभ किया गया है। उत्तरकाशी में गौमुख से लगभग 118 किमी भागीरथी नदी का स्रोत जो गंगा के मुख्यधाराओं में से एक है। गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए नमामि गंगे परियोजना का लाभ लोगों को मिल सकता है। 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने स्पर्श गंगा बोर्ड की घोषणा की थी, जिसका विधिवत गठन फरवरी 2010 में हुआ था। मुख्यमंत्री बोर्ड के पदेन अध्यक्ष थे, जबकि गढ़वाल विश्वविद्यालय के डॉ. प्रभाकर बड़ोनी को स्पर्श गंगा बोर्ड में ओएसडी बनाया गया था।
    तत्कालीन निशंक सरकार ने सुप्रसिद्ध सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी और अभिनेता विवेक ओबराय को स्पर्श गंगा बोर्ड का ब्रांड एंबेसडर बनाया था। इसी तरह चार अप्रैल 10 को स्पर्श गंगा के प्रमोशन के लिए ऋ षिकेश में बड़ा कार्यक्रम किया गया था, जिसमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, धार्मिक गुरु दलाई लामा समेत कई नामचीन हस्तियों ने भाग लिया था। गंगा और उसकी सहायक नदियों में हो रहे प्रदूषण को रोकने के लिए इस बोर्ड का गठन किया गया था। इसके तहतए विभिन्न स्कूल-कॉलेजों और स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए गए।
    हालांकि इस दौरान भी न तो इस बोर्ड का ढांचा तैयार हो पाया और न ही इसके लिए बजट की व्यवस्था हो पाई। जैसे-तैसे कार्मिकों की तनख्वाह निकलती रही और तो और इसका अपना कार्यालय भी नहीं खुल पाया। अब एक बार फिर इस बोर्ड को पुनर्जीवित कर गंगा समग्र पर काम करने की सरकार की मंशा दिखती है परिणाम क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन नए बोर्ड के बाद कुछ न कुछ तो लाभ गंगा को मिलेगा ही।