उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक गायिका बसंती बिष्ट को इस साल का पद्मश्री पुरस्कार मिलेगा। बुधवार को हुए पद्म पुरस्कारों की घोषणा में इसका ऐलान किया गया।63 साल की बसंती बिष्ट पिछले कई साल पद्म पुरस्कारों के लिये शॉर्ट लिस्ट की गई लेकिन उन्हें येदियुरप्पा पुरस्कार आख़िरकार इस साल मिला।
बसंती देवी बिष्ट को अपनी भावपूर्ण जागर के लिए न केवल उत्तराखंड में बल्कि विदेशों में भी बहुत पुरस्कार मिले है। जागर शैली का गायन देवी देवताओं को जगाने के लिये पारंपरिक तौर पर पुरुषों द्वारा गाया जाता रहा है। बसंती पहली और अकेली ऐसी महिला है जिन्होंने इस प्रथा को दरकिनार कर जागर सीखा और सालों से इस प्राचीन जागर के माध्यम से लोगों को जागृत करती रही हैं। इस कला को इन्होंने अपनी मां से सीखा। चमोली ज़िले केंद्र लुआनी गाँव में जन्मी बसंती ने बचपन से अपनी माँ को घर में जागर गाते सुना था। लेकिन घर ग्रहस्ती के चलते बसंती का जागर गायिका के रूप में करियर उनके 50 के हो जाने के बाद शुरू हो सका। शादी करके चंडीगढ़ जाने के बाद बसंती ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा चंडीगढ़ के प्राचीन कला केंद्र से ली। और वापस देहरादून आने के बाद बसंती ने अपने करियर की शुरुआत की। बसंती का कहना है कि देवभूमि के सांस्कृतिक जादू ने हमेशा उन्हे प्रेरित किया है।
बसंती देवी बिष्ट ने आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर भी अपनी प्रस्तुतियां दी है।इनकी भावपूर्ण आवाज श्रोताओं को भावविभोर कर देती हैं और श्रोता के मन में इनको सुनने की इच्छा बार बार होती है। उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान में सजी बसंती जब स्टेज पर आती हैं तो उनके गाने के साथ साथ उतनी ही तादाद में लोग उनकी तस्वीरें भी खींचते हैं।
बसंती उत्तराखंड से पद्म पुरस्कार पाने वाली 36वीं व्यक्ति होंगी। निश्चित तौर पर बसंती ने जागर जैसी लोक कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान दिलाई है और अब पद्दम पुरस्कार के साथ उन्होने राज्य का भी नाम रौशन किया है।