बसंत पंचमी’ हिंदुओं का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। इसे ‘श्रीपंचमी’ भी कहते हैं। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार माघ महीने के पांचवें दिन (पंचमी) पर हर साल मनाया जाता है।
उत्तराखंड में बसंत पंचमी से बैठकी होली की शुरुआत हो जाती है। मां सरस्वती के पूजन के साथ लोग पंचमी के दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीला खाना खाते हैं।उत्तराखंड के ज्यादातर हिस्सों में बसंत पंचमी के दिन पीले और मीठे चावल बनाएं जाते हैं और लोग इसका सेवन करते हैं।
बसंत पंचमी, ज्ञान, संगीत और कला की देवी, ‘सरस्वती’ की पूजा का त्यौहार है। इस त्यौहार में बच्चों को हिंदू रीति के अनुसार उनका पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने का रिवाज़ है। बसंत पंचमी सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक है।
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा वसंत का आरंभ हो जाता है। यह दिन नई ऋतु के आने का सूचक है। इसीलिए इसे ऋतुराज वसंत के आने का पहला दिन माना जाता है। साथ ही यह मां सरस्वती की जयंती का दिन है।
इस दिन से प्रकृति के सौंदर्य में निखार दिखने लगता है। वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नए-नए गुलाबी रंग की कलियां और पत्ते मन को मुग्ध करते हैं। इस दिन को बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना के रूप में मनाया जाता है।