अाज भी मनाया जाता है ऐतिहासिक मौण मेला

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देवभूमी उत्तराखंड अपने रीति रिवाजों और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, आज भी यहां कई ऐसी परंपराएं जिंदा हैं, जैसे कि मौण मेला, जहां मछलियों का सामूहिक शिकार किया जाता है। इसमें हजारों की तादाद में लोग अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ने का ऐतिहासिक त्योहार मनाते है। टिमरू के तने की छाल को सुखाकर तैयार किए गए महीन चूर्ण को मौण कहते हैं। इसे पानी में डालकर मछलियों को बेहोश करने में प्रयोग किया जाता है। मौण के लिए दो महीने पहले से ही ग्रामीण टिमरू के तनों को काटकर इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं, मेले से कुछ दिन पहले तनों को आग में हल्का भूनकर इसकी छाल को ओखली या घराटों में बारीक पाउडर तैयार किया जाता है।

राजशाही से चली आ रही है परंपरा ये मेला टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह ने स्वयं अगलाड़ नदी में पहुंचकर शुरु किया था। उस समय मेले के आयोजन की तिथि और स्थान रियासत के राजा तय करते थे।अाज यह मेला पूरे जोर शोर से बारिश के बावजूद मनाया गया, भारी तादाद में ग्रामीणों ने मछली पकड़ने के लिए जाल, फटियाड़ा, कुंडियाला आदि उपकरणों का प्रयोग किया अौर मेले मे शिरकत ली।

साल दर साल नौजवान युवक बढ़-चढ़ कर इस समाप्त होती परंपरा में भारी संख्या में भाग ले रहे हैं जिसे देख बूढ़ी हो रही पीढ़ी को एक आशा की किरण दिखाई देती है कि पीढ़ीयों से चला आ रहा मौन मेला अपनी अस्तित्व नहीं खोऐगा।