प्रदेश के ग्राम प्रधानों ने दिए सामूहिक इस्तीफे

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ग्राम प्रधानों का मानदेय 750 रुपये प्रतिमाह से पांच हजार रुपये प्रतिमाह करने, पंचायतीराज एक्ट लागू करने, ग्राम पंचायत को मिलने वाली राज्य वित्त की धनराशी पूर्व की भांति यथावत करने की मांग को लेकर प्रदेश के प्रधानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।सोमवार को प्रदेशभर में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन कर ग्राम प्रधानों ने सामूहिक इस्तीफे सौंपे। ग्राम प्रधान संगठन ने उनकी मांगें न माने जाने पर प्रदेश सरकार के खिलाफ उग्र-आंदोलन की चेतावनी भी दी। प्रदेश सरकार ने यह फैसला केंद्र की ओर से जिला पंचायतों के मद में जारी होने वाली विकास योजनाओं की धनराशि को सीधे ग्राम सभा को देने के निर्णय के बाद लिया है। उधर, राज्य सरकार का कहना है कि यह राजनीति से प्रेरित प्रतिक्रिया है। कांग्रेस से जुड़े प्रधान ही इस्तीफे दे रहे हैं।
प्रदेशभर में ग्राम प्रधान संगठन के बैनर तले लगभग 7850 ग्राम प्रधानों ने जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन किया। इस दौरान ग्राम सभाओं के वित्त में कटौती से नाराज ग्राम प्रधानों ने जिलाधिकारी और जिला पंचायत राज अधिकारियों को अपने इस्तीफे सौंपे। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष गिरीवीर परमार ने कहा कि राज्य सरकार ने राज्य वित्त के आधार पर ग्राम पंचायतों को मिलने वाली धनराशि में 60 प्रतिशत की कटौती की है। ग्राम प्रधान संगठन का आरोप है कि इस कटौती से पंचायत स्तर पर चल रही योजनाएं प्रभावित हो रही हैं।
परमार ने कहा कि वे लंबे समय से ग्राम पंचायत को अधिकार संपन्न बनाए जाने और ग्राम प्रधान का मानदेय को बढ़ाकर पांच हजार किए जाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके उलट राज्य वित से मिलने वाली धनराशि में कटौती कर दी। संगठन के अध्यक्ष परमार ने कहा कि अगर बजट में हुई कटौती को वापस लेने के साथ ही उनकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो संगठन पहले ब्लाक स्तर पर और उसके बाद प्रदेश स्तर पर आंदोलन करेगा। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो राजधानी में डेरा डालकर उग्र आंदोलन किया जाएगा।
वहीं, ग्राम पंचायतों के बजट में हुई कटौती पर जिला पंचायतों का कहना है कि जिला पंचायत के माध्यम से भी ग्राम सभाओं में विकास कार्य किए जाते है। जिला पंचायत देहरादून के अध्यक्ष चमन सिंह ने प्रधान संगठन के इस कदम को अप्रजातांत्रिक बताया। उन्होंने कहा कि ऐसी ही स्थिति जिला पंचायतों के सामने एक वर्ष पूर्व आई थी। इसमें केंद्र सरकार ने जिला पंचायतों को मिलने वाला बजट सीधे ग्राम पंचायतों को देना शुरू कर दिया था लेकिन, जिला पंचायत सदस्यों ने प्रधानों की तरह ऐसे इस्तीफा नहीं दिया था। उन्होंने कहा कि केंद्रीय वित्त से विभिन्न योजनाओं का सौ फीसदी बजट भी ग्राम पंचायतों को और राज्य की ओर से जारी होन वाली धनराशि भी अगर सीधे ग्राम सभा को दे दी जाए तो जिला पंचायत की भूमिका क्या रह जाएगी।
उधर, देहरादून में ग्राम प्रधान संगठन से जुड़े ग्राम प्रधान जिला पंचायत राज अधिकारी एवं जिला विकास अधिकारी के कार्यालय पर एकत्रित हुए और प्रदर्शन करते हुए सामूहिक इस्तीफे सौंपे। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार लगातार ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा कर रही है, जिसे किसी भी दशा में सहन नहीं किया जाएगा। उनका कहना है कि राज्य वित की कटौती को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाएं और उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम 2016 को पूर्ण रूप से सुनिश्चित किया जाए। 73वें संविधान के लिए अधिकार दिए जाएं।