उत्तराखंड का नाम जहन में आते ही पहाड़ों के खाली होते गांवों की तस्वीरें हर उत्तराखंडी के सामने आ जाती हैं। सरकारी फाइलों में, गोष्ठियों में पलायन को रोकने की तमाम बातें कैद हैं लेकिन सच ये है कि पहाड़ों पर युवा बेहतर जिंदगी और काम की तलाश में लगातार मैदानों की तरफ रुख कर रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच कभी कभी ऐसी तस्वीरें भी सामने आती हैं जो वीरान होते पहाड़ों पर फिर खुशहाली के लौटने की उम्मीद जगाती है। ऐसी ही एक तस्वीर है 25 साल की रंजना रावत।
रुद्रप्रयाग जिले के धीरी गांव की रहने वाली रंजना ने अपनी मेहनत, लगन और जोश से पहाड़ों पर रचे बसे जीवन को एक नया रूप दिया है।रंजना रुद्रप्रयाग की रहने वाली हैं और यहीं से उसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की, इसके बाद रंजना ने गढ़वाल विश्वविद्यालय से बी-फार्मा की डिग्र हासिल की। इस डिग्री ने रंजना को देहरादून में इंडस्ट्रीयल फार्मसिस्ट की नौकरी दिला दी, जहाँ लगन से रंजना ने तीन साल काम किया। अपने सफर के बारे में बात करते हुए रंजना कहती हैं कि, “नौकरी करके मुझे एहसास हुआ कि मैं सिर्फ अपनी जीवन शैली को बेहतर करने की तरफ काम कर रही थी, अपने अंदर मौजूद स्किल और टैलेंट का कोई खास इस्तेमाल नहीं हो रहा था”
इसी एहसास ने रंजना को दिल्ली में मशरूम की खेती से रूबरू कराया। इसके बाद रंजना को अपने हुनर को निखारने और अपने जन्मभूमि के लिये कुछ करना का रास्ता साफ दिखने लगा। पिछले जनवरी, रंजना ने देहरादून में अपनी नौकरी छोड़ी व अपने गांव वापस पहुंच कर पूरी शिद्दत से अपने लक्ष्य को हासिल करने में लग गई।
आज रंजना की गिनती मशरूम की खेती करने वाली सफल उद्यमियों में होती है। लेकिन रंजना ने इस कला को अपने तक ही सीमित नहीं रखा, रंजना ने अपने यहां मशरूम केती को लेकर वर्कशाॅप आयोजित की, “इस काम में मेहनत और लागत दोनों ही कम है और मुनाफा अच्छा खासा है।” रंजना के इस कदम से आज उनके गांव के 50 परिवार आम, अमरूद, आढू की खेती कर रहे हैं। इसके साथ पाॅली हाउस लगा कर मौसमी फल, सब्ज़ी और मशरूम भी उगाते हैं। यहीं नही, यहां के लोग राज्य के करीब 6 जिलों में लोगों को ट्रैनिंग भी देते हैं।
रंजना अब अपने इलाके की युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा बन गई हैं। वो कहती हैं कि “पहले लोग खेती को टाइम-पास मानते थे। लेकिन मेरा फार्म माॅडल बन गया है, में पहले खुद उगाती हूं और फिर लोगों को सिखाती हूं जिससे वो भी अपनी आमदनी कर सके।” हांलाकि रंजना की राह न पहले आसान थी न अब है। वो बताती हैं कि, ‘सरकार के पास योजनाऐं तो बहुत हैं पर उनका सीधा और समय पर फायदा नहीं मिल पाता, इसके साथ-साथ तकनीकि मदद न के बराबर है।’
फिलहाल रंजना ने अपने गांव को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने को अपना लक्ष्य बना रखा है। वो कहती हैं कि “मैं अपने गांववालों को साथ लेकर व्यापर करना चाहती हूं ताकि बीच के बिचौलियों को खत्म किया जा सके और किसान को उसकी उपज का सीधा और सहीं मोल मिल सके।”
रंजना न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि देशभर के युवाओं के लिये प्रेरणा हैं। वो दिखाती हैं कि अगर मन में विशवास और दृढ़ संक्लप हो तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं होती।