गोपेश्वर। गढ़वाली कुमायूनी भाषा को संविधान की अनुसूचि में शामिल कराने के लिए तथा लोक भाषा को जीवित करने के लिए कई बौद्धिक प्रयास हो रहे हैं। शहरों में बैठकर गढ़वाली कुमायूनी बचाने की बौद्धिक जुगाली भी हो रही है लेकिन इन सब से दूर, बहुत दूर चमोली के ठेट सिरौली गांव में गढ़वाली भाषा में रामलीला का आयोजन हो रहा है। हासिए पर चली गई गढ़वाली भाषा में ही रामलीला के पात्र संवाद और गानों के माध्यम से अभिव्यक्ति दे रहे हैं। लोगों को यह प्रयास खूब भा रहा है। सती माता अनुसूया मंदिर के मार्ग पर है सिरोली गांव। यहां के नव युवक मंगल दल ने राम के साथ-साथ गढ़वाली भाषा बचाने और उसे सम्मान सहित प्रयोग में लाने के लिए एक संकल्प लिया।
रामलीला कमेटी के आयोजक टीम राहुल सिंह बताते हैं कि युवकों ने तीन महीने तक कड़ी मेहनत से गढ़वाली भाषा में रामलीला का जनरल तैयार किया और पूरी रामलीला गढ़वाली में लिखी। इन तीन महीनों में लगातार रिर्हसल भी की गई। युवकों का यह प्रयास गांव और आसपास के बुजुर्गों को खूब भाया और सबने युवा पीढ़ी का सहयोग देने की बात कही। इस रामलीला में जो भी पात्र हैं और वे अपनी अभिव्यक्ति संवाद डायलाॅग और पहाड़ में होने वाली रामलीला में प्रयुक्त चौपाई रागनी और मालकोष जैसे रागों को गढ़वाली धूनों में गा रहे हैं।
जिला पंचायत सदस्य उषा रावत, भागीरथी कुंजवाल इस रामलीला को देखकर अभिभूत है। उन्होंने कहा कि लोक भाषा और परंपरा को बचाने की यदि कोई प्रेरणा ले तो सिरौली गांव के इन नव युवकों से लें जिन्होंने राम के साथ-साथ लोक भाषा गढ़वाली की मर्यादा को बचाने का काम किया है।