पुरोला के लाल धान की खेती तैयार, कटाई में जुटे काश्तकार

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रवांई के पुरोला क्षेत्र का मशहूर लाल धान (चरदान) का कटोरा तैयार हो चुका है। इन दिनों पुरोला के कमल और रामा सेंराई में धान की कटाई शुरू हो चुकी है ।

रवांई घाटी के पुरोला के करीब 2000 हेक्टेयर क्षेत्र में लाल धान की खेती होती है। यदि इसे जीआई टैग मिल जाता है, तो अंतराष्ट्रीय बाजार में यह एक ब्रांड बन जायेगा।

गौरतलब है कि पौष्टिकता से भरपूर लाल धान आयरन प्रोटीन एंटी ऑक्सीडेंट की होती है। पुरोला के प्रचुर मात्रा चरदान की खेती करने वाले चंदेली के गोविन्द राम नौटियाल,नेत्री गांव के केंद्र सिंह, बलवंत सिंह आदि ने बताया कि यह अनाज सदियों से हमारे क्षेत्र में उगाया जा रहा है, लेकिन इस बार पैदावार इतनी अच्छी नहीं है।

पारंपरिक जैविक तरीके से उगाए जाने वाले इस धान में आयरन, प्रोटीन, पोटैशियम, फाइबर और एंटी ऑक्सीडेट भरपूर मात्रा में रहती है। यह दिल, हड्डी, मोटापे और अस्थमा आदि बीमारियों से बचाता हैं। इसका मुख्य कारण बीज का पुराना होना और पहाड़ों में तापमान का बढ़ना है। हिमाचल के खरीदार लाल चावल को 100 -140 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदते हैं।

पुरोला के लाल धान की की डिमांड हिमाचल प्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों में है। कृषि विभाग चाहता है कि गंगा घाटी के लोग भी इसका उत्पादन शुरू करें, जिसे कि काश्तकारों की आमदनी अधिक बढ़े। विभाग ने इसके नई पहचान देने की तैयारी की थी।

कृषि विभाग ने जीआई (जियोग्राफिक्ल इंडिकेशन) टैग दिलाने के लिए कृषि सचिव को पत्र भेजा था। यदि क्षेत्र के लाल धान को जीआई टैग मिल जाता है, तो यह उत्पाद एक ब्रांड बन जाता। इससे इसके मूल्य और उत्पादन में बढ़ोतरी होती। इसे उगाने वाले काश्तकारों को भी इससे अधिक फायदा होगा।